तुम्हारे इन्तजार में
तुमने मेरी सुध न ली
इस बेरहम संसार में |
कितने यत्न किये मैंने तुम्हें रिझाने में
अपनी ओर झुकाने में
पर तुम स्वार्थी निकले
एक निगाह तक न डाली मुझ पर |
यह कोई न्याय नहीं है
मेरे प्रति इतना भेद भाव किस लिए
किस से अपनी व्यथा कहूं मैं
तुमने मुझे बिसराया है |
पूरे समय तुम्हारा किया ध्यान
फिर भी तुमने सिला न दिया
मन को बहुत क्लेश हुआ
करूं कैसे विश्वास किसी पर|
अंधविश्वास मुझसे न होता
फिर भी अटूट श्रद्धा तुम पर
तुमने भी एक न सुनी मेरी
मुझे अधर में लटका दिया |
हे श्याम सुन लो मेरी प्रार्थना
छुटकारा दिला दो इस दुनिया से
अब मेरी यहाँ किसी को
कोई आवश्यकता नहीं है|
आशा