तुम्हारे इन्तजार में
तुमने मेरी सुध न ली
इस बेरहम संसार में |
कितने यत्न किये मैंने तुम्हें रिझाने में
अपनी ओर झुकाने में
पर तुम स्वार्थी निकले
एक निगाह तक न डाली मुझ पर |
यह कोई न्याय नहीं है
मेरे प्रति इतना भेद भाव किस लिए
किस से अपनी व्यथा कहूं मैं
तुमने मुझे बिसराया है |
पूरे समय तुम्हारा किया ध्यान
फिर भी तुमने सिला न दिया
मन को बहुत क्लेश हुआ
करूं कैसे विश्वास किसी पर|
अंधविश्वास मुझसे न होता
फिर भी अटूट श्रद्धा तुम पर
तुमने भी एक न सुनी मेरी
मुझे अधर में लटका दिया |
हे श्याम सुन लो मेरी प्रार्थना
छुटकारा दिला दो इस दुनिया से
अब मेरी यहाँ किसी को
कोई आवश्यकता नहीं है|
आशा
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-8-21) को "रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन"(चर्चा अंक- 4150) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
सुप्रभात
हटाएंआभार कामिनी जी मेरी रचना को शामिल करने की सूचना के लिए |
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंदिव्यता बिखेरती रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शांतनु जी टिप्पणी के लिए |
गहन रचना।
जवाब देंहटाएंDhanyavad for the comment
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना | इसी भाव को लेकर मैंने भी एक रचना अपने ब्लॉग पर डा ली थी -10 तुमको मेरे भजन न भाये |
जवाब देंहटाएंसांस सांस बन गई आरती ,
स्वर बन गूंजे भजन तुम्हारे |
धडकन धडकन बनी बांसुरी ,
टेरे तुमको सांझ सकारे |
तुमको यह वन्दन न सुहाए |
स्नेह गंध सरसी कलियों के ,
हार युगल चरणों पर वारे |
अक्षत , कुमकुम , अर्घ्य अश्रु जल ,
रो रोकर तव चरण पखारे |
तुमको यह अर्पण न सुहाए |
कभी समय मिले तो पूर्ण रचना पढने का प्रयास कीजिये |
बहुत सुन्दर रचना है |टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
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