07 अगस्त, 2021

क्यों बिसराया मुझे



                                   
                                  मैंने कितने दिन रात काटे
   

तुम्हारे इन्तजार में

             तुमने मेरी सुध न ली 

इस बेरहम संसार में |

कितने यत्न किये मैंने तुम्हें रिझाने में

अपनी ओर झुकाने में  

पर तुम स्वार्थी निकले

एक निगाह तक न डाली मुझ पर  |

यह कोई न्याय नहीं है

मेरे प्रति इतना भेद भाव किस लिए

किस से  अपनी व्यथा कहूं मैं

तुमने मुझे बिसराया है |

पूरे समय तुम्हारा किया ध्यान

फिर भी तुमने सिला न दिया

मन को बहुत क्लेश हुआ 

 करूं  कैसे विश्वास किसी पर|

अंधविश्वास  मुझसे न होता

फिर भी अटूट श्रद्धा तुम पर

तुमने भी एक  न सुनी मेरी

मुझे अधर में लटका दिया |

हे श्याम सुन लो मेरी प्रार्थना

छुटकारा दिला दो इस दुनिया से

अब मेरी यहाँ किसी को

कोई आवश्यकता नहीं है|

आशा  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


10 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-8-21) को "रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन"(चर्चा अंक- 4150) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार कामिनी जी मेरी रचना को शामिल करने की सूचना के लिए |

      हटाएं
  2. सुप्रभात
    धन्यवाद शांतनु जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत सुन्दर रचना | इसी भाव को लेकर मैंने भी एक रचना अपने ब्लॉग पर डा ली थी -10 तुमको मेरे भजन न भाये |
    सांस सांस बन गई आरती ,
    स्वर बन गूंजे भजन तुम्हारे |
    धडकन धडकन बनी बांसुरी ,
    टेरे तुमको सांझ सकारे |
    तुमको यह वन्दन न सुहाए |
    स्नेह गंध सरसी कलियों के ,
    हार युगल चरणों पर वारे |
    अक्षत , कुमकुम , अर्घ्य अश्रु जल ,
    रो रोकर तव चरण पखारे |
    तुमको यह अर्पण न सुहाए |
    कभी समय मिले तो पूर्ण रचना पढने का प्रयास कीजिये |

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  4. बहुत सुन्दर रचना है |टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

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