10 अक्टूबर, 2015

वह निकट होती



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किये बंद कपाट ह्रदय के
ऊपर से पहरा नयनों का
कोई मार्ग नहीं छोड़ा
उस  तक पहुँचने का
ताका झांकी कैसे हो
यह भी नहीं  संकेत  दिया
क्या मन में छिपाया
क्या कहना चाहा
जब बोलती तो पता होता
अन्धकार में छोड़ा तीर
सही निशाना तो होता
बंद दरवाजा मन का
देता नहीं मंजूरी
किसी को आने की
बातों ही बातों में
उलझने बढाने की
क़यामत तो तब आती
जब जवां तक बात आती
कहने का मन बनाती
पर बिना बोले लौट जाती
बंद दिल का कपाट
मुंदी आँखों की भाषा
यदि पढ़ने की क्षमता होती
ऐसी उलझन न होती
वह बहुत निकट होती |

08 अक्टूबर, 2015

टूटे दिल के तार


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टूटे वीणा के तार 
कभी ना जुड़ पाए 
किये प्रयास हजार 
पर न सुधर  पाए
पहले सी मिठास नहीं
सुर बेसुर हो गए
कण कटु लगने लगे
आकर्षण से दूर हुए
खीचातानी अधिक हुई
सहन न कर पाए
 हुए बेआव़ाज
टूट कर रह गए
तार तार हो गए
पर हार ना मानी उसने
प्रयत्न निरंतर करती थी
तार न जाने कब जुड़ जाएं
इसी आशा पर जीती थी
आस बिश्वास की डोर में
बंधती गई उलझती गई
जाने कब डोर झटके से टूटी
सारे स्वप्न बिखर गए
टूटे दिल के तार
फिर कभी ना जुड़ पाए |
आशा





05 अक्टूबर, 2015

भावना मन की



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 हो तुम्हीं  मेरे जीवन धन
जनम जनम के साथी
तुम दीपक मैं बाती
जियूं कैसे स्नेह बिना |
जब से बंधन बांधा तुमसे
सप्तपदी को साक्षी मान
सौप दिया तन मन धन तुमको
विश्वास का संबल पा तुमको |
कभी मान अभिमान किया
रूठना मनाना भी हुआ 
इतने सौपान जिन्दगी के चढी 
साथ सदा तुमने ही दिया |
 भरपूर जिन्दगी जी ली है
कहीं कोई कमीं नहीं है
फिर भी जब मुश्किल घड़ी हो
रह न पाती तुम्हारे बिना |
है आज जन्म दिन तुम्हारा
यह शुभदिन बार बार आये 
हर पल खुशियों से भरा हो 
कोई व्यवधान नहीं आये |
है आज विशिष्ट दिन जीवन का 
  खुशियाँ साथ साथ बाँटें 
दुःख भी साथ ही झेलें
हम सदा वैसे ही रहें
जैसे  बीते कल में थे  |
आशा

एक नज़ारा