05 अक्टूबर, 2015

भावना मन की



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 हो तुम्हीं  मेरे जीवन धन
जनम जनम के साथी
तुम दीपक मैं बाती
जियूं कैसे स्नेह बिना |
जब से बंधन बांधा तुमसे
सप्तपदी को साक्षी मान
सौप दिया तन मन धन तुमको
विश्वास का संबल पा तुमको |
कभी मान अभिमान किया
रूठना मनाना भी हुआ 
इतने सौपान जिन्दगी के चढी 
साथ सदा तुमने ही दिया |
 भरपूर जिन्दगी जी ली है
कहीं कोई कमीं नहीं है
फिर भी जब मुश्किल घड़ी हो
रह न पाती तुम्हारे बिना |
है आज जन्म दिन तुम्हारा
यह शुभदिन बार बार आये 
हर पल खुशियों से भरा हो 
कोई व्यवधान नहीं आये |
है आज विशिष्ट दिन जीवन का 
  खुशियाँ साथ साथ बाँटें 
दुःख भी साथ ही झेलें
हम सदा वैसे ही रहें
जैसे  बीते कल में थे  |
आशा

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