30 अक्टूबर, 2015

वाणी अनमोल

 

मीठी वाणी दुःख हरती 
कटु भाषा
 शूल सी चुभती 
यही शूल
 दारुण दुःख देते 
सहज कभी
 ना होने देते
मनोभाव
 जिव्हा तक आते 
चाहे जब
फिसल जाते 
बापिस लौट नहीं पाते 
कटुता फैलाते 
आदत से
बाज न आते 
गहरे घाव
 मगर कर जाते 
सुख चैन मन का
हर लेते 
मुसीबतों का
कारण बनते 
वाणी अनमोल
 रस की पगी 
होती मन का दर्पण
 जीवन पर्यंत
 शब्दों का वह  जखीरा 
 याद किया जाता 
यदि तोल मोल कर
 बोला जाता 
संभाषण सब को सुहाता |

आशा




28 अक्टूबर, 2015

मुक्तक मोती


ना कजरे की धार चाहिए
ना नयनों के वार चाहिए
हो आभा प्रचुर मुखारबिंद पर
उसका ही खुमार चाहिए |


शब्दों के ना वार चाहिए
प्यार भरी फुहार चाहिए
नियामत मिले न मिले
छोटा सा उपहार चाहिए |


दृष्टि तेरी मैली सी
नहीं धूप रुपहली सी
कभी तो परदा उठता
ना लगती तू पहेली सी |



जब नजर से नजर मिली
कली मन की खिली
पर नजर हटते ही
प्रसन्नता धूल में मिली |
आशा




आशा


आशा

26 अक्टूबर, 2015

अंकुश


छड़ी जंग मन और ह्रदय में के लिए चित्र परिणाम


एक दिन उसने कहा
कभी दूर न जाना
स्वप्नों में आना
आ कर न जाना |
कहा उसका मान लिया
लगाया अंकुश प्रवाह पर
कुछ क्षण ठहराना चाहा 
रुकने का मन बनाया |
मन को बंधन स्वीकार नहीं
रुकना उसकी फितरत नहीं
पर जाने की चाह नहीं
दुविधा आन पड़ी |
विद्रोही आदत से मजबूर
अस्थिर अधीर मन
कशमकश से विचलित
बगावत पर उतर आया |
छिड़ी जंग मन और ह्रदय में
हो कौन  विजयी रब  जाने
है जान सांसत में अभी तो
किसकी माने न माने |
भावुकता कम न होती
बुद्धि भी हावी होती
उलझन बढ़ती  जाती
विचार शून्य सी हो जाती |
यही हाल यदि रहा
कैसे निर्णय तक पहुंचूंगी
मन पर नियंत्रण न होगा
ना ही दिल काबू में होगा |
नीव जीवन की हिल जाएगी 
मंजिल दूर नजर आयेगी 
अनिर्णय की स्थिति में 
वह बोझ हो जाएगी |
आशा