30 अक्टूबर, 2015

वाणी अनमोल

 

मीठी वाणी दुःख हरती 
कटु भाषा
 शूल सी चुभती 
यही शूल
 दारुण दुःख देते 
सहज कभी
 ना होने देते
मनोभाव
 जिव्हा तक आते 
चाहे जब
फिसल जाते 
बापिस लौट नहीं पाते 
कटुता फैलाते 
आदत से
बाज न आते 
गहरे घाव
 मगर कर जाते 
सुख चैन मन का
हर लेते 
मुसीबतों का
कारण बनते 
वाणी अनमोल
 रस की पगी 
होती मन का दर्पण
 जीवन पर्यंत
 शब्दों का वह  जखीरा 
 याद किया जाता 
यदि तोल मोल कर
 बोला जाता 
संभाषण सब को सुहाता |

आशा




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