28 अक्टूबर, 2015

मुक्तक मोती


ना कजरे की धार चाहिए
ना नयनों के वार चाहिए
हो आभा प्रचुर मुखारबिंद पर
उसका ही खुमार चाहिए |


शब्दों के ना वार चाहिए
प्यार भरी फुहार चाहिए
नियामत मिले न मिले
छोटा सा उपहार चाहिए |


दृष्टि तेरी मैली सी
नहीं धूप रुपहली सी
कभी तो परदा उठता
ना लगती तू पहेली सी |



जब नजर से नजर मिली
कली मन की खिली
पर नजर हटते ही
प्रसन्नता धूल में मिली |
आशा




आशा


आशा

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