13 अक्टूबर, 2012

साथ


शब्द वांण विष से बुझे ,करते गहरे घाव |
वो ही करता सामना ,जिसका होवे ठांव ||

हुआ मनाना रूठना ,बीते कल की बात |
धन न हुआ तो क्या हुआ ,है अनुभव का साथ ||

निमिष भर अकेला रहा ,लागी मन को ठेस |
जब समय के साथ चला ,मिटने लगा कलेश ||

अभिनव प्रयासरत रहा ,ना है  दिल पर बोझ |
कुछ नया  बन कर रहेगा ,होगी नई खोज ||

कभी न हिम्मत हारता ,जो चलता अविराम |
भव सागर से तर जाता ,ले कर प्रभु का नाम ||
आशा

11 अक्टूबर, 2012

बेचारे बगदी लाल जी


बेचारे बगदी लाल जी ,करन चले व्यापार |
महंगाई की मार का ,सह न पाए वार ||

है लाभ क्या न जानते ,झुझलाते पा हार |
होते विचलित हानि से ,जीवन लगता भार ||

किसी   सलाह से बचते ,मन मे उठता ज्वार |
अनजाने बने रहते ,जब भी  होता वार ||

दखल देते बेहिसाब और बदलते भेष |
अवमानना से अपनी ,उनको  लगती ठेस||

गणित हानि लाभ का ,सब विधि के आधीन |
धनिक बनने की चाह में ,इस पर गौर न कीन्ह ||

खड़ा हुआ सच सामने ,धूमिल कल की याद |
मीठी यादें आज की ,भविश्य की सौगात ||
आशा

09 अक्टूबर, 2012

मनुहार



एक मोर एक मोरनी ,पहुंचे जमुना तीर
पंख पसारे नाचते ,मन की हरते पीर  ||

प्यार भरा अंदाज नया ,मन हरता चितचोर |
कान्हां को पा गोपियाँ ,हुईं आत्म बिभोर ||

थिरकते कदम बहकते ,पा बंसी का साथ
गुमान से भर उठतीं पा कान्हां का साथ ||

डाह से बंसी छिपाई ,जिसके मीठे बोल
राधा यह भी जानती कितनी है अनमोल ||

पाकर अपनी बांसुरी ,कान्हां भूले साथ |
खोजती स्वयं को उसमें,ले हाथों में हाथ ||

आँखों से अश्रु झरते ,मोती से अनमोल |
कान्हां की मनुहार के ,प्यारे लगते बोल ||

बेनु सुधा बरसन लगी ,मन में उठत हिलोर
जाने कैसे रात गयी ,होने को है भोर ||

हरे भरे वन महकते ,फूलन लगे पलाश |
उस मधुवन में खोजती, विरहण मन की प्यास ||
आशा