एक मोर एक मोरनी ,पहुंचे
जमुना तीर
पंख पसारे नाचते ,मन
की हरते पीर ||
प्यार भरा अंदाज नया
,मन हरता चितचोर |
कान्हां को पा
गोपियाँ ,हुईं आत्म बिभोर ||
थिरकते कदम बहकते
,पा बंसी का साथ
गुमान से भर उठतीं
पा कान्हां का साथ ||
डाह से बंसी छिपाई
,जिसके मीठे बोल
राधा यह भी जानती
कितनी है अनमोल ||
पाकर अपनी बांसुरी ,कान्हां
भूले साथ |
खोजती स्वयं को
उसमें,ले हाथों में हाथ ||
आँखों से अश्रु झरते
,मोती से अनमोल |
कान्हां की मनुहार
के ,प्यारे लगते बोल ||
बेनु सुधा बरसन लगी ,मन
में उठत हिलोर
जाने कैसे रात गयी ,होने
को है भोर ||
हरे भरे वन महकते
,फूलन लगे पलाश |
उस मधुवन में खोजती,
विरहण मन की प्यास ||
आशा
बहुत सुंदर दोहे ... मनभावन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह !! अति सुंदर !!
जवाब देंहटाएंवाह.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत.....
सादर
अनु
वाह ..वाह बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंमनभावन !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर..
:-)
वाह: बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंकृष्ण के प्रति हर अनुराग की बखूबी प्रस्तुति ,आभार सहित |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया काव्य टिप्पणियाँ .नूरा कुश्ती तो बहुत देखी यहाँ नूरा कुंडली कुंडली खेल रहें हैं आप और अरुण कुमार निगम साहब .बढ़िया तंज़ और व्यंजना ला रहे हो नित्य प्रति रविकर भैया .
जवाब देंहटाएंबेनु सुधा बरसन लगी ,मन में उठत हिलोर
जाने कैसे रात गयी ,होने को है भोर ||
हरे भरे वन महकते ,फूलन लगे पलाश |
उस मधुवन में खोजती, विरहण मन की प्यास ||
आशा जी सक्सेना प्रकृति नटी के सौन्दर्य की साथ गोप किलोल का रस वर्षन पूरी रचना में हैं ,
हरित बांस की बांसरी ,मुरली लइ लुकाय ,सौंह धरे ,भौहन हँसे ,देन करत नट जाय .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! आपने तो घर बैठे मथुरा वृन्दावन के दर्शन करा दिए ! बहुत बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह जी सुंदर है
जवाब देंहटाएंपूरा प्रसंग इस बात का प्रतीक प्रतीत होता है कि तन,मन और आत्मा तीनों की प्यास महत्वपूर्ण है। इन तीनों की आवश्यकताएं अलग-अलग हैं,जिनका साझा समाधान है- प्रेम। जिसे वह मिला,सार्थक हुआ उसका जीना। ऐसों के जीने से ही दुनिया की भी सार्थकता।
जवाब देंहटाएंकान्हा की नगरी की सैर हो गयी ये तो ...बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगोप गोपियाँ झूमते,मोर मोरनी संग
जवाब देंहटाएंजमुना सतरंगी हुई,सुंदर प्रेम प्रसंग |
एक तरफ राधा करे,मीठी धुन की चाह
दूजे सौतन मानकर,मन में करती डाह |
बहुत ही मनभावन,कान्हामय करते हुए दोहे.
सुन्दर लीला-चित्रण !
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावन दोहे
जवाब देंहटाएंपाकर अपनी बांसुरी ,कान्हां भूले साथ |
जवाब देंहटाएंखोजती स्वयं को उसमें,ले हाथों में हाथ ||
आँखों से अश्रु झरते ,मोती से अनमोल |
कान्हां की मनुहार के ,प्यारे लगते बोल ||
बहुत सुन्दर...
भावविभोर हो गयी पढ़ते-पढ़ते..!
आप सब का ब्लॉग पर आने के लिए और अपने विचार टिप्पणी के रूप में देने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह ...मन को भा गई
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