01 जून, 2019

वाकयात कुछ ऐसे





वाकयात कई ऐसे होते हैं
सारा करार गुम हो जाता है
यूँ तो कोई बात नहीं होती
 बातों के बतंगड़ बन जाते हैं |
कहीं कोई गोलमाल होता है
उसे कानों कान खबर नहीं होती
प्यार तो नहीं होता पर
चर्चा सरे आम हो जाती है |
बाकयात से घबरा कर
वह अपना मुंह छिपा लेते हैं
कोई फलसफा नहीं बनता पर
बिनाबात शर्मसार हुए जाते हैं |
आशा

28 मई, 2019

अभाव हरियाली का





खँडहर में कब तक रुकता
आखिर आगे तो जाना ही है
बिना छाया के हुआ बेहाल
बहुत दूर ठिकाना है
थका हारा क्लांत पथिक
पगडंडी पर चलते चलते
सोचने को हुआ बाध्य
पहले भी वह जाता था
पर वृक्ष सड़क किनारे थे
उनकी छाया में दूरी का
तनिक भान न होता  था
मानव ने ही वृक्ष काटे
धरती को बंजर बनाया
 कुछ ही पेड़ रह गए हैं
वे भी छाया देते नहीं
खुद ही धूप में झुलसते 
लालची मानव को कोसते
जिसने अपने हित के लिए
पर्यावरण से की छेड़छाड़
अब कोई उपाय न सूझता
फिर से कैसे हरियाली आए
  पथिकों का संताप मिटाए |
आशा

26 मई, 2019

जुगनू






 मन न माना बेचैन हुआ
कदम न रुके बढ़ चले 
जंगल में जा कर चांदनी रात में 
घूमने का आनंद लेने |
चमक दमक कायनात की
चन्द्र रश्मियाँ  पर्णों में
दीखती थीं  समाई
गजब की चमक थी उनमें |
धरती के कण कण में
 चांदनी की छटा  देती  थी दिखाई
किसी अन्य साधन की 
न थी आवश्यकता
 रौशनी के लिए|
रात्रिचर यहाँ वहां 
नजर आते थे
मानो वे भी  चाहते हों
स्नान  करना चांदनी में |
ज्यूँ ज्यूँ चांदनी बढी
अनोखी चमक छाई कायनात में
जुगनुओं का उत्साह बढ़ा
चमक इतनी बढ़ी
जैसे स्नान  कर के आए हों अभी 
चांदनी  में तरबतर हो|
मैं बनी गवाह उनके 
हर क्रिया कलाप की
मैंने पूरा  आनंद उठाया
चांदनी रात का नजारा देखा |
 यहाँ वहां उनके  उड़ने का 
चमकना फिर गायब होने का 
जंगल में विचरण का
 पूर्ण  आनंद उठाया |

आशा