29 जनवरी, 2022

पिंजरे में बंद जीव



पञ्च तत्व से बनाया पिंजरा

द्वार बंद करना शेष रहा

तभी जीव ने कदम रखा

पीछे से आए माया मोह मद लोभ |

जैसे ही कदम रखे पिंजरे में

द्वार स्वयम  ही बंद हो गया

जीव ने कोशिश की भर पूर पहले

वह टस से मस न हुआ

बंद ही रहा बहुत समय तक |

जीव ने सोचा क्या करे

भरपूर माया का उपयोग किया

माया में हो लिप्त गया

मोह ने अपने भी  पैर पसारे

दौनों का मद ऐसा चढ़ा उस पर

वह मदांध हो गया इतना की

वहीं फंसा रह गया बहुत समय तक |

पर जब हुआ जर जर पिंजरा

याद आई फिर से स्वतंत्र विचरण की

उस द्वार की जिससे

पिंजरे में  प्रवेश किया था |

वह बेचैन हुआ आध्यात्म की ओर झुका

हर बार ईश्वर का ध्यान करता

फिर द्वार खोलने का प्रयत्न करता

माया मोह से मन उचटा उसका |

एक दिन पिजरे का द्वार खुला रह गया

वह भूला उन चारों को जिन ने बांधा था उसको

उड़ चला स्वतंत्र हो अनंत में  

 खाली पिंजरा रह गया जो पञ्च तत्व में विलीन हुआ 

 इस भव सागर में |

आशा


 

28 जनवरी, 2022

आखिर कब तक

 

 कब तक बिना सुविधाओं के

 जन जीवन कितना हुआ कठिन

यह तुम क्या जानोगे 

तुमने कभी अभाव देखा ही नहीं |

दिन रात काम करते तब भी

दो जून की रोटी तक नसीब नहीं होती 

यही हाल रहा तो कैसे जीवन बीतेगा

आधी दूर भी न चल पाएंगे

अधर में अटक कर रह जाएंगे |

धनवानों के घर जो भोजन

फेंक दिया जाता घूरे पर

वही बीन कर खाना पड़ता

 विडंबना नहीं तो और क्या है|

किसी की थाली में षटरस भोजन

कोई भूखे पेट ही सो जाता

उसे कुछ भी हांसिल नहीं होता 

है यह कैसी नीति उसकी |

जब जन्म दिया धरा पर  

क्यूँ न दीं सुख सुविधाएं

महनत की कोई कीमत नहीं क्या ?

मजदूर यूँ ही बिना बात पिसते रहते

कभी दया न आई मालिकों को |

जब जन्म लिया था एक साथ

फिर तुम कहाँ और वह कहाँ

किसी के भाग्य में क्या लिखा प्रभू ने 

है यह न्याय कैसा उसका

कभी सोच कर देखना | 

यदि गहराई से सोचा समझ जाओगे

यह अंतर किसलिए ?

शायद है पूर्व जन्म के कर्मों का फल   

या है पूर्व जन्म के किये कर्मों की सजा  

एक जन्म में उस को जो कार्य सोंपा जाता

जब निष्कर्ष निकलता देर हो चुकी होती

मृत्यु का डेरा आ जाता  |

आत्मा यूँ ही भटकती न रहती

पिछले कर्मों की सजा पाते ही 

इस जन्म में यहीं पर जब तक 

 अपनी सजा पूरी नहीं कर लेती

आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती |  

आशा

27 जनवरी, 2022

बेटी आई


 

आई खुश खबरी 

 मन हुआ उत्फुल्ल  

जब बेटी आई घर में

 बहार आई जीवन में |

जब घुटनों चली 

चलना सीखा, खुद खड़ी हुई

 अपनी चाह बताने को 

फरमाइश भी खुद ही करने लगी |

एक दिन भेजा उसके पापा को

 बाजार सौदा लाने को

वे ले आए पायलें जो छमछम बोलें  

जब बजें कान में रस घोलें |

वह ठुमक ठुमक कर चलने लगी

घुघरुओं की खनक  

सुनाई देती आँगन में   

 मन मोर सा नाचने लगता उसे देख |

किसी ने कहा

 यह तो है पराया धन

पर मन बोला नहीं है वह पराया धन

वह  तो है  लक्ष्मीं घर की  |  

वही  हैं  बडभागी

जिनके घर बेटी जन्म लेती 

सभी बधाई देते

मिठाई बांटी जाती खुशिया मनाई जातीं |  

जब बेटी पढेगी लिखेगी

सर्वगुण सम्पन्न बनेगी  

उसके गुणों की चर्चा सर्वत्र होगी |

जब व्याही जाएगी 

 एक नहीं दो कुल की मर्यादा निभाएगी  

सर हमारा गर्व से उन्नत होगा 

 यही हमें पुरूस्कार मिलेगा |

आशा 

26 जनवरी, 2022

है आज गणतंत्र दिवस


 

है आज गणतंत्र दिवस  

तिरंगा झंडा तिरंगा फहराने का दिन  

स्वतंत्रता के जश्न को मनाने का दिन 

सभी धूमधाम से मिलजुल कर

यह जश्न मनाते

 इसका महत्व समझते समझाते 

बीते दिन याद करते | 

गलतियां ना दोहराने का वादा लेते

देश को उन्नति के शिखर पर

पहुंचा कर ही दम लेगे कहते 

सी वादे को पूरा करके दिखाएगे |  

कभी पीछे न हटेंगे

प्रति वर्ष की तरह इसे दिल से मनाएंगे

कुछ नया कर के दिखाएंगे 

स्वतंत्र देश के हैं नागरिक |

हैं नौनिहाल भारत के 

भविष्य के कर्णधार देश के 

अपनी शक्ति को पहचान दिलाएंगे 

अपनी कार्य कुशलता  दिखाएंगे |

 जय जय भारत के नारे लगाएंगे 

 कार्य की गुणवत्ता को बनाए रखेंगे 

अपने बीते कल को याद करेंगे 

स्वर्णिम भारत की पहचान बढ़ाएंगे | 

आशा

कर्तव्य निष्ठ


 

किया जब इकरार किसी से

उसे पूरा करना है तन मन से

यही सीखा है अपने अनुभवों से  

  किसी  पर बोझ न बनना   |

 कर्तव्य पूर्ण करो निष्ठा से

यही समर्पण तुम्हें सफलता देगा  

जो भी मिलेगा तुमसे

 हल्कापन महसूस करेगा खुद में |

अपार शान्ति होगी उसके मन मंदिर में

यही कार्य होते हैं परोपकार के

यही शिक्षा मिली है समाज से

 तुम क्यों रहे हो  दूर इससे |

 निष्ठा है आवश्यक परोपकार के लिए

दिखावे से कुछ न होगा

जब इसपर कदम रखोगे

सफल होते जाओगे |

लोग तुम्हें नाम से जानेगे

तुम्हारे काम से जानेगे

सफल व्यक्तित्व के धनी होगे

उससे ही पहचाने जाओगे |

कार्य जो हाथ में लिया हो

जब पूरा होगा तुम्ही पहचान बनोगे  

उसी सफलता के धन से  

तुम  ही पहचाने जाओगे |

आशा

25 जनवरी, 2022

हाइकु


 

वह हारा है

 जब की मनमानी

अपनों ही से

 

पर्वत ऊंचा   

पूरी आस्था खुद पे

चढ़ पाऊंगा

 

चंचल नहीं

रही गंभीर सदा

पर सफल  

 

कैसा हंसना

अजी है रोना कैसा

यहीं रहना

 

छलका जल

चली है चाल तेज

गगरिया से

 

चली कामिनी

लहराती चूनर

नयन झुका

 

बंधन मुक्त

हुआ यहीं उन्मुक्त

खुले व्योम में

आशा