25 जनवरी, 2022

हाइकु


 

वह हारा है

 जब की मनमानी

अपनों ही से

 

पर्वत ऊंचा   

पूरी आस्था खुद पे

चढ़ पाऊंगा

 

चंचल नहीं

रही गंभीर सदा

पर सफल  

 

कैसा हंसना

अजी है रोना कैसा

यहीं रहना

 

छलका जल

चली है चाल तेज

गगरिया से

 

चली कामिनी

लहराती चूनर

नयन झुका

 

बंधन मुक्त

हुआ यहीं उन्मुक्त

खुले व्योम में

आशा  

2 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया हाइकु ! अंतिम हाइकु की दूसरी पंक्ति चेक कर लें !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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