आज है उसका मन उदास
किस कारण जान न पाई
किसी ने कुछ कहा नहीं
ना उसने किसी से पाला बैर |
दो बोल प्यार के भी कड़वे लगते
ऐसा भी होता है कभी सोचा नहीं
अब इतनी उग्रता आई कैसे
आया मन में दुराग्रह क्यूं किस लिए |
यही अर्थ समझ में आया
जब उसने स्नेह जताया था
तब कोई महत्व नहीं था उसका
जितनी बार किया ध्यान आकर्षित
उतनी ही बार नकारा गया उसको |
यही समझ में आया
कोई जगह नहीं थी रिक्त
उसके मन मस्तिष्क में |
अब है केवल एक दिखावा
पहले घुमते खाते थे
एक साथ रहते थे
हर बात सांझा करते थे |
अब यह बात नहीं रही है
छल कपट ने ले लिया है स्थान
पहले की प्रेम भरी बातों का
सब दिखावा है सत्यता कुछ भी नहीं |
आशा
सब मन की उलझन है ! धीरे धीरे सब सामान्य हो जाता है ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 26 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
मन में भावनाओं का आरोह अवरोह स्वाभाविक है।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
प्रणाम
सादर।
सुन्दर अभिव्यक्ति
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