21 जनवरी, 2022

आज की राजनीति




 

कब तक यही होता रहेगा

केवल बातों से कुछ न होगा  

बहसवाजी का कोई हल नहीं 

कार्य करेंगे तभी कुछ होगा|

मुद्दे क्या हैं  हल क्या हो उनका 

आज तक स्पष्ट न हो पाया 

राजनीति का स्तर इतना गिरा कि  

अब बहस सुनना तक

सहन होना मुश्किल हुआ 

कोई अर्थ नहीं निकलता |

 अपशब्दों का प्रयोग सामान्य हुआ     

अब वे  आशीर्वाद जैसे दिए जाते हैं

बेपैंदे के लोटे हैं आज  के नेता

जिस ओर दम हो वहीं लुढ़क जाते हैं |

ना कोई उसूल उनके बारबार पार्टी बदलते 

ना ही किसी के अंध भक्त

  एक पार्टी में शामिल होते फिर पाला  बदलते |

प्रजातंत्र हुआ खोखला 

मंच पर भाषण शोर में बदले 

लोकतंत्र भीड़तंत्र  कब हुआ  कैसे हुआ

ऐसा अंधड़ आया कैसे ज्ञात नहीं | 

  आशा

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