कब तक यही होता रहेगा
केवल बातों से कुछ न होगा
बहसवाजी का कोई हल नहीं
कार्य करेंगे तभी कुछ होगा|
मुद्दे क्या हैं हल क्या हो उनका
आज तक स्पष्ट न हो पाया
राजनीति का स्तर इतना गिरा कि
अब बहस सुनना तक
सहन होना मुश्किल हुआ
कोई अर्थ नहीं निकलता |
अपशब्दों का प्रयोग सामान्य हुआ
अब वे आशीर्वाद जैसे दिए जाते हैं
बेपैंदे के लोटे हैं आज के नेता
जिस ओर दम हो वहीं लुढ़क जाते हैं |
ना कोई उसूल उनके बारबार पार्टी बदलते
ना ही किसी के अंध भक्त
एक पार्टी में शामिल होते फिर पाला बदलते |
प्रजातंत्र हुआ खोखला
मंच पर भाषण शोर में बदले
लोकतंत्र भीड़तंत्र कब हुआ कैसे हुआ
ऐसा अंधड़ आया कैसे ज्ञात नहीं |
आशा
वाह! बहुत ही सार्थक और सामयिक भी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंthanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंअवसरवादी हैं अधिकतर आज के नेता ! सबको सत्ता से और कुर्सी से प्यार है ! जो प्रलोभन दे उधर ही लुढ़क जाते हैं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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