22 अक्टूबर, 2022

किसको दें प्राथमिकता

 



कितना सताओगे सब से झूट बोलोगे

तुम्हें यह भी ख्याल नहीं कि यह गलत होगा

तुम्हारा  अपने आप से धोखा होगा 

सब की निगाहों से भी गिर जाओगे |

यह कैसी ईमानदारी है कि  खुद को धोखा दोगे

अपने आप से भी झूठ बोलोगे

 बच्चों को भी यही सिखाओगे

ईमानदारी की शिक्षा न दोगे |

उनके नन्हें मस्तिष्क में यही प्रपंच डालोगे

उन में संस्कार का अभाव पैदा करोगे

यह मत भूलो कि वे कल के नागरिक होंगे

संस्कृति के पुरोधा होंगे |

होंनहार बनके अपना कर्तव्य निभाएंगे

देश के प्रति अपना जो कर्तव्य होगा

उसे बहुत शिद्दत से निभाएंगे

 देश को प्राथमिकता देंगे अपने वादे से न हटेंगे|

21 अक्टूबर, 2022

पांच दिवसीय त्यौहार


 





है प्रारम्भ आज से पांच दिवसीय दीपों का त्यौहार 

है आज धनतेरस कल होगी रूप चौदह्दस

परसों दीपावली अगले दिन गोवर्धन पूजा

‘ आखिर में यम दुतिया   भाई दूज पर्व  |

यह पञ्च दिवस का त्यौहार मानता

है बड़ी धूमधाम से मनाया जाता 

है मेल मिलाप का त्यौहार

 सर्दी के  मौसम की शुरू होने की तैयारी |

सारे घर की वार्षिक सफाई की जाती

दीपक जलाए जाते और पटाखे  चलाए जाते

धन की देवी  के आगमन की

खुशियों का त्योहार मनाया जाता दिलो जान से |

कुछ लोग ताश भी खेलते दीपावली की रात

यह त्यौहार खुशी से मनाते

 दीपावली मनाते बड़े प्यार से

राह देखते धनागमन की देवी की |

आशा सक्सेना

20 अक्टूबर, 2022

प्यार की चर्चा

 

प्यार की चर्चा कीजिए पर समय देख कर| समय की नजाकत का बड़ा महत्त्व है |यदि समय का ध्यान न रखा तब कुछ गलत भी हो सकता है |

मानो किसी के यहाँ कोई दुर्घटना हुई है और आपस में किसी के प्रेम  प्रसंग की वहां कोई बात  कर रहे हैं तब कितना अजीब लगेगा |लोग सुनेगे और मजा लेंगे पर आपका मुंह पलटते ही आपकी हंसी भी उडाएंगे |क्यों कि समाज में रहकर अपनी आदतों को बदलना पड़ता है |हमें समाज के नियमों का पालन करना होता है |तभी हम सफल नागरिक हो सकते है |

17 अक्टूबर, 2022

मन चंचल हुआ

 

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                                  मन चंचल हुआ कैसे 

बेमुरब्बत हुआ

किसी का कोई

 ख्याल नहीं रखा |

सिर्फ खुद की ही सोची

और किसी की नहीं

हुआ ऐसा किस कारण

जान न पाई |

निजी स्वार्थ में खो गई

अपनापन भूली

मन हुआ कठोर

किसी की सुध न ली |

इतना निर्मोही कैसे हुआ

बार बार सोचा

पर ख्याल सब का भूली

अपने तक सीमित रही  |

कभी हंसती मुस्कराती

कभी गंभीर हो जाती

मैं खुद नहीं जानती

मैं क्या चाहती |

मेरी उलझने हैं मेरी

किसी को क्या मतलब

मेरे मन का अवमूल्यन हुआ है

यह जानती हूँ मैं |

अब पहले जैसी

 प्रसन्नता अब कहाँ  

खाली मन रीता दिमाग

अब सहन नहीं होता

मन क्लांत हो जाता |

एक बुझा सा जीवन

शेष  रहा है

फिर भी कोशिश मैं कमी नहीं

प्रयत्न बराबर जारी है 

यही मेरी खुद्दारी है 

जीवन को फिर से जिऊंगी 

सब से मिलजुल कर रहूँगी |

आशा सक्सेना

16 अक्टूबर, 2022

मन उत्श्रंखल हुआ

 

कितनी बार सोचा समझा

कुछ सीखने की कोशिश की

पर मन पर नियंत्रण न रहा

हर बात में उत्श्रंखल  हुआ |

किसी पर न जाने क्यूँ विश्वास न रहा

ना ही आत्मविश्वास रहा अपने पर

फूँक फूँक कर जब रखे कदम 

मन का संबल कहीं गुम हो गया|

अब न जाने क्या होगा

मुझ में जीने की ललक भी

कहीं सुप्त हुई है अब क्या करूं|

ना कहीं मन लगता मेरा 

 काट रही हूँ निरुद्देश्य जीवन के दिन 

किसी से क्या कहूं हाल बेहाल हुआ है 

मन का चैन कहीं खोगया |

आशा सक्सेना