17 अक्तूबर, 2022

मन चंचल हुआ

 

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                                  मन चंचल हुआ कैसे 

बेमुरब्बत हुआ

किसी का कोई

 ख्याल नहीं रखा |

सिर्फ खुद की ही सोची

और किसी की नहीं

हुआ ऐसा किस कारण

जान न पाई |

निजी स्वार्थ में खो गई

अपनापन भूली

मन हुआ कठोर

किसी की सुध न ली |

इतना निर्मोही कैसे हुआ

बार बार सोचा

पर ख्याल सब का भूली

अपने तक सीमित रही  |

कभी हंसती मुस्कराती

कभी गंभीर हो जाती

मैं खुद नहीं जानती

मैं क्या चाहती |

मेरी उलझने हैं मेरी

किसी को क्या मतलब

मेरे मन का अवमूल्यन हुआ है

यह जानती हूँ मैं |

अब पहले जैसी

 प्रसन्नता अब कहाँ  

खाली मन रीता दिमाग

अब सहन नहीं होता

मन क्लांत हो जाता |

एक बुझा सा जीवन

शेष  रहा है

फिर भी कोशिश मैं कमी नहीं

प्रयत्न बराबर जारी है 

यही मेरी खुद्दारी है 

जीवन को फिर से जिऊंगी 

सब से मिलजुल कर रहूँगी |

आशा सक्सेना

12 टिप्‍पणियां:

  1. तनमन की अस्वस्थता प्रकट करती पंक्तियां

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-10-22} को "यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:"(चर्चा अंक-4585) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार कामिनी जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने क लिए |

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  3. मन की ऊहापोह एवं समाधान भी दर्शाती सुन्दर प्रस्तुति!

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  4. वाह ! आत्म विश्लेषण एवं आत्मचिंतन के पलों को रेखांकित करती सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

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