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मन चंचल हुआ कैसे
बेमुरब्बत हुआ
किसी का कोई
ख्याल नहीं रखा |
सिर्फ खुद की ही सोची
और किसी की नहीं
हुआ ऐसा किस कारण
जान न पाई |
निजी स्वार्थ में खो गई
अपनापन भूली
मन हुआ कठोर
किसी की सुध न ली |
इतना निर्मोही कैसे हुआ
बार बार सोचा
पर ख्याल सब का भूली
अपने तक सीमित रही |
कभी हंसती मुस्कराती
कभी गंभीर हो जाती
मैं खुद नहीं जानती
मैं क्या चाहती |
मेरी उलझने हैं मेरी
किसी को क्या मतलब
मेरे मन का अवमूल्यन हुआ है
यह जानती हूँ मैं |
अब पहले जैसी
प्रसन्नता अब कहाँ
खाली मन रीता दिमाग
अब सहन नहीं होता
मन क्लांत हो जाता |
एक बुझा सा जीवन
शेष रहा है
फिर भी कोशिश मैं कमी नहीं
प्रयत्न बराबर जारी है
यही मेरी खुद्दारी है
जीवन को फिर से जिऊंगी
सब से मिलजुल कर रहूँगी |
आशा सक्सेना
तनमन की अस्वस्थता प्रकट करती पंक्तियां
जवाब देंहटाएंबेनामीं जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-10-22} को "यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:"(चर्चा अंक-4585) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आभार कामिनी जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने क लिए |
हटाएंमन की ऊहापोह एवं समाधान भी दर्शाती सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंवाह ! आत्म विश्लेषण एवं आत्मचिंतन के पलों को रेखांकित करती सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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