हुस्न तेरा क्या कहियेकिसी हूर से कम नहीं तू
या है एक नन्हीं परी
श्वेत वस्त्रों से सजी है |
पंख भी हैं धवल तेरे
प्यार से जब भी देखती
सारी कायनात रौशन होती
जन्नत नजर आने लगती |
जब रौद्र रूप धारण करती
सांस हलक में अटक जाती
दृष्टि देख सहम जाती
मेरी जान निकल जाती |
|आशा
16 जनवरी, 2021
नन्हीं परी
14 जनवरी, 2021
=बालिका से बनी गृहणी
बनती सवरती बिंदास रहती
गृह कार्य में रूचि न रखती
जब छूटा बाबुल का अंगना
तब मुंह बाए खड़ी थीं समस्याएँ अनेक |
जिधर देखो यही कहा जाता
कुछ भी तो आता नहीं
कैसे घर चला पाएगी
किस किसके मुंह पर ताला लगाती |
पर वह हारी नहीं
धीरे से कब कुशल गृहणी में बदली
जान नहीं पाई |
जानना चाहते हो कैसे ?
यह था लगन का चमत्कार
जिस कार्य को करने को सोचा
जी जान लगा दी उसने
कभी सफल् हुई कभी हारी
\पर हिम्मत नहीं हारती |
यही एक गुण था उसमें ऐसा
जहां जाती सफलता उसके कदम चूमती
जिससे सभी क्षेत्रों में हुई सफल
कुशल गृहणी कहलाई |
आशा
13 जनवरी, 2021
लोहड़ी पर्व के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं
हर वर्ष मनाते हैं लोहड़ी का त्यौहार
तिल गुड़ के मिष्ठान बना करते है आवाहन |
आज रात्रिमें अलाव जलाते
नवल धान का भोग लगाते
एकत्र हो दे कर परिक्रमा करते है सम्मान |
आशा
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12 जनवरी, 2021
गोद माँ की
माँ के आँचल की छाँव तले
ममता भरी गोद में
जब पनाह मिलती है
बड़ा सुकून मिलता है |
धीरे धीरे जब सर सहलाती है
एक अनोखी ऊर्जा का संचार होता है
यही ऊर्जा जीने की ललक
जगाती है
क्षण भर में ही सारी थकान
दूर हो जाती है |
अद्भुद स्नेह से हो तृप्त
जब गोदी से सर हटाता हूँ
बड़ा सुकून मिलता है मुझे
मन में होता स्नेह का संचार सुखद |
काश स्नेह मई माँ का प्यार ऐसा
सब के नसीब में होता
माँ की गोद की उष्मा
बड़े भाग्य से मिलती |
जो सुरक्षा वहां मिलती
उसकी कल्पना बड़ी सुखदाई
होती
माँ की कभी कमी सदा खलती
होती अनमोल माँ की गोद
उसकी कोई सानी नहीं होती|
आशा
हुआ अनोखा एहसास मुझे
हुआ अनोखा एहसास मुझे
यह कैसे हुआ क्या
हुआ
मैं जानती कैसे
अब मुझे विचार
करना होगा ।
जब आज तक न जान पाई
न जाने कब तक
इंत्जार रहेगा तुम्हारा
मैं कैसे जान पाती ।
मन का विश्वास
अभी खोया नहीं है
हैअसीम श्रद्धा प्रभू पर
यह तो याद है मुझे ।
अचानक ख्याल आया मुझे
पहले जब तुमसे मिली थी
एक बात का वादा किया था
वही रहा है नियामत मेरे लिये ।
आशा
पुस्तक
आशा कैसी किस से करूं
कोई तो अपना हो
कब तक आश्रित रहूंगी
यह तक मालूम नहीं |
किताब भी मौन है
कुछ बोलती नहीं
न जाने कैसे नाराज हुई
यह भी मालूम नहीं |
यह कैसा अन्याय है
मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ
अब तक समझ न पाई
पुस्तक से दूरी किस लिए |
11 जनवरी, 2021
कितना सताया है मुझे
कितना सताया है
मुझे
इंतज़ार करके हारी
मेरी परीक्षा कब तक लोगे
मेरे श्याम बिहारी |
घंटों बैठी बाट निहारती
तुम न आए गिरधारी
मैं सारे जग से ठगी गई
यह हुआ कैसे मैं जान न पाई
|
अब जा कर सतर्क हुई हूँ
जब से ठोकर खाई है
दुनिया की रीत निराली है |
यहाँ स्थान रिक्त नहीं है
मुझ जैसे लोगों के लिए
ना तो चालबाजी आई
ना ही लोका चार यहाँ का |
मैंने किनारा कर लिया है
इस अजूबी दुनिया से
अब आपकी शरण में आई हूँ
अब तो अपनालो मुझे |
आशा