आशा कैसी किस से करूं
कोई तो अपना हो
कब तक आश्रित रहूंगी
यह तक मालूम नहीं |
किताब भी मौन है
कुछ बोलती नहीं
न जाने कैसे नाराज हुई
यह भी मालूम नहीं |
यह कैसा अन्याय है
मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ
अब तक समझ न पाई
पुस्तक से दूरी किस लिए |
किताबें किसीसे नाराज़ नहीं होतीं ! हम ही उनकी पहुँच से दूर हो जाते हैं ! फिर से जाइए उनके पास वो उतने ही प्यार से मिलेंगी !
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किताबें किसीसे नाराज़ नहीं होतीं ! हम ही उनकी पहुँच से दूर हो जाते हैं ! फिर से जाइए उनके पास वो उतने ही प्यार से मिलेंगी !
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