कितना सताया है
मुझे
इंतज़ार करके हारी
मेरी परीक्षा कब तक लोगे
मेरे श्याम बिहारी |
घंटों बैठी बाट निहारती
तुम न आए गिरधारी
मैं सारे जग से ठगी गई
यह हुआ कैसे मैं जान न पाई
|
अब जा कर सतर्क हुई हूँ
जब से ठोकर खाई है
दुनिया की रीत निराली है |
यहाँ स्थान रिक्त नहीं है
मुझ जैसे लोगों के लिए
ना तो चालबाजी आई
ना ही लोका चार यहाँ का |
मैंने किनारा कर लिया है
इस अजूबी दुनिया से
अब आपकी शरण में आई हूँ
अब तो अपनालो मुझे |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंThanks for the information
जवाब देंहटाएंयहाँ स्थान रिक्त नहीं है
जवाब देंहटाएंमुझ जैसे लोगों के लिए
ना तो चालबाजी आई
ना ही लोका चार यहाँ का |
संवेदनशील मन व्यथित होकर प्रभु चरणों में ही आसरा ढ़ूढता है..
बहुत सुन्दर सृजन।
धन्यवाद टिप्पणी के लिए सुधा जी |
हटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शांतनु जी टिप्पणी के लिए |
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