11 जनवरी, 2021

कितना सताया है मुझे

 

 

 

 

 

 

 




 

 

 

 

 

 

 



 कितना सताया है  मुझे

इंतज़ार करके हारी

मेरी परीक्षा कब तक लोगे

मेरे श्याम बिहारी  |

घंटों   बैठी  बाट निहारती

तुम न आए गिरधारी

मैं सारे जग से ठगी गई

यह हुआ कैसे मैं जान न पाई |

अब जा कर सतर्क हुई हूँ

 जब से ठोकर खाई  है

दुनिया की रीत निराली है |

यहाँ स्थान रिक्त नहीं है

मुझ जैसे लोगों के लिए

 ना तो चालबाजी आई

ना ही लोका चार यहाँ का |

 मैंने किनारा कर लिया है

इस अजूबी दुनिया से

अब आपकी शरण में आई हूँ

अब तो  अपनालो मुझे |

आशा




8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. यहाँ स्थान रिक्त नहीं है
    मुझ जैसे लोगों के लिए
    ना तो चालबाजी आई
    ना ही लोका चार यहाँ का |
    संवेदनशील मन व्यथित होकर प्रभु चरणों में ही आसरा ढ़ूढता है..
    बहुत सुन्दर सृजन।

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  3. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !

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