महका वन उपवन
चली वासंती पवन
बसंत में रंग गयी
फूलों से लदी
डालियाँ
झूमती अटखेलियाँ करतीं
आपस में चुहल करतीं
बहार आगमन की सूचक वे
बीता कल याद दिला जातीं
यादे ताजी कर जातीं
कुछ नई और जुड़ जातीं
यादें होती बेमानीं
लौट कर न आनीं
पर होती मीठी सी
रह न
पाती अनजान उनसे
जब पलकें अपनी मूँदूं
दृष्टि पटल से वे गुजरतीं
जाने कब गाड़ी थम जाती
आगे बढ़ना नहीं चाहती
बंद घड़ी के कांटे सी
वहीँ ठिठक कर रह जाती
उस पल को भरपूर जीती
वह लम्हा विशिष्ट होता
सारे दुःख पीछे रह जाते
सुख के झरने झरझर झरते
फिरसे नव ऊर्जा भरते
उन्मुक्त कदम आगे बढते|
आशा