09 फ़रवरी, 2013

वह पल



बौराता  अमवा
महका वन उपवन
चली वासंती पवन
बसंत में रंग गयी
फूलों से लदी  डालियाँ
झूमती अटखेलियाँ करतीं
आपस में चुहल करतीं
बहार आगमन की सूचक वे
बीता कल याद दिला जातीं
यादे ताजी कर जातीं
कुछ नई और जुड़ जातीं
यादें होती बेमानीं
लौट कर न आनीं
पर होती मीठी सी
 रह न पाती अनजान  उनसे
जब पलकें  अपनी मूँदूं
दृष्टि पटल से वे गुजरतीं
जाने कब गाड़ी थम जाती
आगे बढ़ना नहीं चाहती
बंद घड़ी के कांटे सी
वहीँ ठिठक कर रह जाती
उस पल को भरपूर जीती
वह लम्हा विशिष्ट होता
सारे दुःख पीछे रह जाते
सुख के झरने झरझर झरते
फिरसे नव ऊर्जा भरते
उन्मुक्त कदम आगे बढते|
आशा 
 

14 टिप्‍पणियां:

  1. यादों का यह मनभावन सफ़र यूँ ही चलता रहे और आपको स्फूर्तिवान बना हर्षित करता रहे यही शुभकामना है ! वसंतागमन की हार्दिक बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया ऋतु वर्णन |
    शुभकामनायें-

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. कविता अच्छी लगी | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. आपको बहुत बहुत साधुवाद..."वह पल"एक बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है.आपने जो भी शब्द लिखे हैं उन्हें पड़ते हुये मेरी आँखों के सामने मल्टीमीडिया प्रभाव से सबकुछ (आपका एक एक शब्द) जीवंत होता दिख रहा था.
    आज चोकलेट दिवस है - बधाईयाँ

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार 10-फरवरी-13 को चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है.

    जवाब देंहटाएं
  8. बसंत ऋतु का सुन्दर वर्णन, मनभावन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्छा वसंत ऋतु के आगमन के अवसर पर सुंदर प्रस्तुति बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: