दोराहे पर खड़ी सोच रही
इधर जाए या उधर जाए
कुछ समझ नहीं पाती
है क्या भाग्य में |
जीवन जीना हुआ कठिन था अब तक
कदम बाहर निकाले आगे की न सोची
क्या यह सही किया?
है दुविधा अभी भी मन में क्या करे
जीने की तमन्ना लिए मन अटका |
दोराहे पर खड़ी सोच रही
इधर जाए या उधर जाए
कुछ समझ नहीं पाती
है क्या भाग्य में |
जीवन जीना हुआ कठिन था अब तक
कदम बाहर निकाले आगे की न सोची
क्या यह सही किया?
है दुविधा अभी भी मन में क्या करे
जीने की तमन्ना लिए मन अटका |
उसके कारण चल न पाती
है ही भारी इतना हुए पैर भारी
बोझ है ही ऐसा किसी से बांटना न चाहा |
अचानक कहाँ से ऊर्जा आई
मेरे अन्तस में समाई
मैंने कार्य पूर्ण करने की ठानी
बढ़ने लगी आगे
काँटे से भरे कच्चे मार्ग पर
कोई की बैसाखी नही चाही
इतनी क्षमता रही मुझ में
केवल तुम्हारे सिवाय कोई मेरा नहीं
रही यही धारणा मन में मेरे
केवल तुम मेरे हो
है पूरा अधिकार तुम पर
और कोई नहीं चाहती
है केवल अपेक्षा तुम से |
आशा सक्सेना
बिना बांसुरी ये सुर कैसे सुनाई देते
कान्हां तो नहीं आए
पर संदेश ले ऊधव आए
कान्हां जा बसे मथुरा नगर
में |
सुध बिसराई हम सब की
भूले से याद न आई
हम मन ही मन दुखी हुए
पलकें न झपकी पल भर को |
रो रो पागल हुए उसकी याद में
अपनी व्यथा किससे व्यक्त
करें
कोई समझ न पाया हम को
हमारा प्यार है कैसा कोई जान न पाया
कान्हां बिन रहा न जाए
माखन मिश्री किसे खिलाएं
हम कान्हां में खोए ऐसे
अपने को ही भूल गए |
कैसा घर द्वार कैसा काम काज
कहीं मन नहीं लगता
दौड़ा जाता कदम के नीचे कुंजों में
या यमुना तीर |
सुनी जहां मीठी धुन मुरली की
ऊधव का ज्ञान भी समझ न पाए
है यही समस्या मन की
कान्हां क्यूँ न आए |
आशा सक्सेना
अनुभव खट्टे मीठे
जीवन में कई खट्टे मीठे अनुभव होते हैं और उनका प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है
व बरसों बरस याद रहता है |सुखमय बातें तो भूल भी जाते है पर कष्टकर बातें
कष्टकर बातें मन को सालती रहतीं हैं | यही बड़ी समस्या है जो जीवन को प्रसन्न
नहीं रहने देतीं |तभी व्यक्ति असामाजिक हो जाता है |उसे लगता है जीवन का मार्ग कठिन कंटकों से भरा |
उसका कोई नहीं इस दुनिया में |
आशा
प्यारे से ये मूक प्राणी
सुख दुःख को समझते
बोल नहीं पाते फिर भी
पास आते अपना प्यार दर्शाते
|
किसी के दुःख में हो दुखी
भोजन तक छोड़
देते
पर खुशी में आसपास घूमते
रहते |
अपनी अदाओं से
मन मोहने की कोशिश करते
अपना स्थान घर में सुरक्षित रखते |
अपनी हरकतों से ध्यान आकृष्ट करते
वे रूठना मनाना भी जानते
अपनी आवाजों से इसे व्यक्त करते |
हर आहट पर अपनी प्रतिक्रया
देते
जैसे ही द्वार खुलता
वहां पहुँच आने वाले का
स्वागत करते
सूघ कर जान जाते
है कोई नया व्यक्ति या नहीं |
जब कोई काम करने आता
उसकी निगरानी करना
अपना कर्तव्य समझते
जब तक वह चला न जाए
वही डटे रहते
मानो वे है
निरीक्षक उनके |
हैं समय के पावंद
किसी के आने की प्रतीक्षा में
दरवाज़े पर जा बैठते जब तक वह न आजाए
राह देखते वही आने वाले मालिक की |
यदि आकर वह प्यार करना भूल जाए
अपनी भाषा में खुद की नाराजगी प्रकट करते |
उनके काम में हो देर यह पसंद नहीं उनको
हैं समय के पावंद सब काम समय पर करते
कितनी गुण गिनाऊँ उनके शब्द ही नहीं मिलते |
अपने अधिकार भी खूब जानते
अपनी कोई वस्तु किसी से नहीं बांटते
उन के जैसा कोई स्नेही नही
हमारा कोजी है उन में से एक |
तुम भारत के रखवाले
हो सीमा पर तैनात
अपना सर्वस्व लुटाने को तत्पर
देश की रक्षा करने को |
है वही प्राथमिकता तुम्हारी
होकर प्रेरणा हमारी
हो धीर गंभीर आगे बढ़ो
तुम से ही है सुरक्षा देश की |
कदम पीछे नहीं लौटाना
मन में दृढ संकल्प रखना
तुम्हारे लिए हम क्या कर सकते है
केवल प्रार्थना के अलावा |
ईश्वर से दुआ ही मांग सकते हैं
तुम कभी हार का मुंह न देखो
भय का संचार नहीं हो
यही है कर्तव्य तुम्हारा |
तुमने पूरे किये वादे पूर्ण समर्पण के साथ
अपने देश की रक्षा में
सारा जीवन किया समर्पित
पूर्ण शिद्दत के साथ |
तुम जैसे जांबाज सभी हों
कितना अच्छा हो
शत्रु आँख उठा कर भी न देखे
सभी इसकी प्राथमिकता को समझें |
पूर्ण करें कर्तव्य देश के प्रति
उसे प्राथमिकता दें
तभी भविष्य देश का सुरक्षित
होगा
हमारा भारत एक रहेगा |
आशा सक्सेना
अपने करते गैरों सा व्यबहार
गैर का होता मनभावन प्यार
यह
तो पता नहीं चलता
कौन
अपना कौन पराया |
मन
यही सोचता रहता
जो
दिखावा होता
उसे कैसे पहचाने
कहाँ
से वह दृष्टि लाए
जो
देखते ही जान ले
किसी
के मन में क्या है |
मन
में किसी के
क्या पक रहा है
क्या
खिलाड़ी पक रही है
अभी पूरी बनी या नहीं |
इंसान
कुछ नहीं करता
यही
सब ईश्वर कराता
वह भावनाओं
में बहता जाता
उसी
के इशारे पर |
क्या यह पूर्व जन्म के
कर्मों का फल होता
या इसी जन्म का अनजाने में
कुछ कहा नहीं जा सकता |
आशा सक्सेना
बे रंग जीवन हुआ तुम्हारे बिना
अब कोई कार्य शेष नहीं
अपने कर्तव्य पूर्ण किये सारे
जिसमें व्यस्त हो मन को बहलाऊँ |
मन हुआ उदास आज
अर्थ क्या बेबजह जीने का
पर यह भी हाथों में नहीं |
जिन्दगी की शाम उतर आई है
कैसे क्या होगा
है सब तुम्हारे हाथ प्रभू
भविष्य
में क्या घटेगा |
अकेले जीवन कैसे कटेगा
छोड़ा मोह सब का फिर भी
भाग्य में जाने क्या लिखा है
मुझे नहीं पता है |
आशा सक्सेना
पढ़ न पाया
न साथी रहा कोई उसका
उसे मन ही मन दोहराए |
कुछ आत्मसात करे
मस्तिष्क को समृद्ध करे
कोई यह तो न कहेगा
उसे कुछ भी नहीं आता |
रह जाता ज्ञान अधूरा उन के बिना
है किताबों से लगाव बहुत
जब मन में संतुष्टि आई
मन प्रसन्न हुआ |
किसी को अंदाजा ना हुआ
उसने क्या पाया
सब ने कहा वाह क्या बात है
लगन हो तो ऐसे हो |
कोई सुविधा न मिली फिर भी
पीछे न रहा किसी से
फिर भी अहम् न आया |
वह अपने तक ही सीमित रहा
इसका भी गम न था उसको
सभी आश्चर्य चकित थे
यह कैसे हुआ |
ये दूरियाँ सब से किस लिए
किसी को मालूम नहीं
पुस्तकें रहीं घनिष्ठ मित्र उसकी
वही रहीं सहायक पर छूपी रहीं |
राज जाहिर न किया सब के समक्ष
वही थी सहायक उसकी
इस प्रगति में |
आशा सक्सेना