पढ़ न पाया
न साथी रहा कोई उसका
उसे मन ही मन दोहराए |
कुछ आत्मसात करे
मस्तिष्क को समृद्ध करे
कोई यह तो न कहेगा
उसे कुछ भी नहीं आता |
रह जाता ज्ञान अधूरा उन के बिना
है किताबों से लगाव बहुत
जब मन में संतुष्टि आई
मन प्रसन्न हुआ |
किसी को अंदाजा ना हुआ
उसने क्या पाया
सब ने कहा वाह क्या बात है
लगन हो तो ऐसे हो |
कोई सुविधा न मिली फिर भी
पीछे न रहा किसी से
फिर भी अहम् न आया |
वह अपने तक ही सीमित रहा
इसका भी गम न था उसको
सभी आश्चर्य चकित थे
यह कैसे हुआ |
ये दूरियाँ सब से किस लिए
किसी को मालूम नहीं
पुस्तकें रहीं घनिष्ठ मित्र उसकी
वही रहीं सहायक पर छूपी रहीं |
राज जाहिर न किया सब के समक्ष
वही थी सहायक उसकी
इस प्रगति में |
आशा सक्सेना
सार्थक चिंतन !
जवाब देंहटाएंधन्हवाद साधना
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