17 दिसंबर, 2022

दीप शिखा


 शाम  हुई महफिल सजी

दीपक जला रौशन किया

आधी रात तक कवितायेँ सुनाई सुनाईं

जैसे जैसे रात गहराई

दीपक की बाती भी जली

पर उसे चैन कहाँ

तुम बिन महफिल सूनी दिखती

दीपक की लौ कभी तेज हो जाती कभी धीमी

 दीप  शिखा उतनी ही उग्र हो बनी रहती   

दीपक तले  तो अंधकार रहता 

पर पूरा कक्ष रौशन करता

 उसे इसकी खबर तक नही होती

कब वायु वेग ने प्रहार किया बाती बुझी

जब बोलती चिड़िया भोर होने की सूचना देती

वायु के झोंके से दीपक बुझने के कगार पर होता

पर उसे यह भान न होता 

भावनाओं में डूबी रहती अपनी पूरी क्षमता से

 अचानक परिवर्तन आता

 बाती  बुझ जाती उसकी 

शिखा जलती कुछ क्षण

महफिल का समापन होता आधी रात के बाद

पर उसका मन होता उदास

 वह दीप शिखा सी उग्र होती |


आशा सक्सेना 

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