किया कभी ना पूजन अर्चन 
ना ही दान धर्म किया 
करतल ध्वनि के साथ 
ना ही भजन  कीर्तन
किया 
पोथी भी कोइ न पढ़ी 
छप्पन व्यंजन सजा थाल में 
भोग भी न लगा पाया |
पर उस पर अटल विश्वास से 
कर्म किया निष्काम भाव से 
हो दृढ़ संकल्प कदम बढ़ाए
निष्ठा से पूर्ण मनोयोग से 
कर्म स्थली को जाना परखा 
उस पर ही ध्यानकिया केंद्रित 
असीम कृपा उसकी हुई 
बिना मांगे मुराद मिली 
तभी तो यह जान पाया 
छप्पन भोग से नही कोइ नाता 
है  केवल  वह भाव का भूखा 
असीम कृपा जब उसकी होगी 
कहीं कमीं नहीं होगी | 
आशा