19 जून, 2015

मेरे बाबूजी



Akanksha
भ्रम बज्र का होता था
   पर दिल मॉम का रखते थे
कष्ट किसी का देख न पाते
दुःख में सदा साथ होते थे |
छोटा सा पुरूस्कार हमें  मिलता 
उन्नत सर गर्व से उनका  होता था
पर यदि हार मिलती 
एक कटु शब्द भी न कहते |
 कठोर बने रहते
बाहर से नारियल से
पर मन होता अन्दर से नर्म
उसकी गिरी सा |
आज भी याद आती है
जब उंगली पकड़ चलना सिखाया था
 गिरने पर रोने न दिया था
सर उठा चलना सिखाया था |
जब सामना कठिनाइयों का हुआ
वही हौसला काम आया
अपनी किसी असफलता पर
कभी भी आंसू न बहाया |
वह छिपा प्यार दुलार
 कभी व्यक्त यूं तो न किया  
कठिनाई में जब खुद को पाया
संबल उनका ही पाया  |
अनुशासन कठोर सदा  रखा
नियमों का पालन सिखाया
तभी तो आज हम
 हुए सफल जीवन में |
आज जो भी हम हैं
उनके  कारण  ही बन  पाए
सफलता की कुंजी जो मिली
वही उसके जनक थे |
बिना  उनके  हम कुछ न बन  पाते
पल पल में हर मुश्किल क्षण में 
वरद हस्त रहता था  उनका
उन्हें हमारा  शत शत नमन  |
आशा

16 जून, 2015

सोच विद्यार्थी का


विद्यार्थी जीवन के लिए चित्र परिणाम
था  प्रथम दिवस शाला का
उत्साह की सीमा न थी
नया बस्ता नई पुस्तकें 
खोलने की जल्दी थी |
नए गणवेश में सजे  थे
नया लंच बॉक्स भी लिए थे
खुशी का ठिकाना न था
नई कक्षा में जाना था |
फिर भी मिल ही गए
यहाँ भी नए पुराने मित्र
बातों का सिलसिला
थमने का नाम न लेता था |
घंटी की आवाज  सुनी 
टूटी तंद्रा पहुचे प्रार्थना कक्ष में
वही उद्बोधन घिसापिटा
सुनते सुनते  उकताने लगे |
सोचा जब सभी कुछ नया था
फिर भाषण पुराना क्यूं
कल से फिर वही शिक्षक होंगे
वही कक्षा कार्य वही डांट |
क्या कोई तरीका नहीं है
नए  ढंग से अध्यन का   
हर क्षेत्र में परिवर्तन दीखते
फिर शिक्षा में क्यूं नहीं ?
आशा