16 जनवरी, 2020

कटते नहीं दिन रात



 कटते नहीं दिन रात
समय गुजरा धीरे से
समय काटना हुआ दूभर
जिन्दगी हुई भार अब तो
मिलेगी इससे निजाद कब |
आँखें पथराईं अब तो
समय काटे नहीं कटता नहीं
ना ही दिन और रात
कितनी प्रतीक्षा और करनी होगी
कोई बतलाता नहीं
ना ही भविष्यवाणी करता
कितनी और प्रतीक्षा करूं
दिल पर भार लिए जी रही हूँ
क्या अब खुशहाल जिन्दगी
का कोई भी पल
नहीं है भाग्य में मेरे
अब तो हार गई हूँ
इस जिन्दगी को ढोते ढोते
क्या लाभ ऐसी जिन्दगी का
जो बोझ बन कर रह गई है सब पर
कोई कार्य नहीं हो पाता बिना बैसाखी के
कैसे समझाऊँ अपने मन को
कहना बहुत सरल है
शायद प्रारब्ध में यही है
पर सच्चाई तो यही है
जन्म मरण किसी के हाथ में नहीं है |
आशा




आशा

15 जनवरी, 2020

अंधा बांटे ???





पांच बरस तक  सभी कार्य रहे  ठन्डे  बसते में |किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी |जिसने भी आवाज उठाई उसे ही दवा दिया गया |पर चुनाव आते ही तरह तरह की घोषनाएं की जाने लगीं |वे सब होती लोक लुभाबनी |सब सोचते अब तो हमारा हर कार्य पूर्ण होगा  हमारी सरकार होगी |हमारी समस्याएँ दूर करेगी|
अब तो बिजली का बिल भी नहीं आएगा |किसानों को भी मुआवजा मिलेगा |झूठे सपनों में जीते लोग अपनों को बोट देने का मन बनाने लगे |पर जब नई सरकार का गठन हुआ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ |
चन्द लोग ही बंदरबाट का आनंद उठा पाए |जिस लाभ की बात होती उन तक ही पहुँच कर
रुक जाता |मानो अंधा बांटे रेबडी फिर फिर अपनों को देने की बात की सच्चाई पर मोहर लग रही हो |
आशा