पांच बरस तक सभी कार्य रहे ठन्डे बसते
में |किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी |जिसने भी आवाज उठाई उसे ही दवा दिया गया
|पर चुनाव आते ही तरह तरह की घोषनाएं की जाने लगीं |वे सब होती लोक लुभाबनी |सब
सोचते अब तो हमारा हर कार्य पूर्ण होगा
हमारी सरकार होगी |हमारी समस्याएँ दूर करेगी|
अब तो बिजली का बिल भी नहीं आएगा |किसानों को
भी मुआवजा मिलेगा |झूठे सपनों में जीते लोग अपनों को बोट देने का मन बनाने लगे |पर
जब नई सरकार का गठन हुआ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ |
चन्द लोग ही बंदरबाट का आनंद उठा पाए |जिस
लाभ की बात होती उन तक ही पहुँच कर
रुक जाता |मानो अंधा बांटे रेबडी फिर फिर
अपनों को देने की बात की सच्चाई पर मोहर लग रही हो |
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.01.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3582 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार सर |
विडम्बना है
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए|
आज का कटु सत्य !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार स्वेता जी |
वाह!!आशा जी ,बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद शुभा जी टिप्पणी के लिए |
बढ़िया। सत्य के करीब...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रकाश जी टिप्पणी के लिए |
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