04 नवंबर, 2011

सृजन के लिए


जो देखा सुना या अनदेखा किया
कुछ बस गया कुछ खो गया
दिल के किसी कौने में
कई परतों में दब गया |
दी दस्तक जब किसी ने
स्वप्नलोक में खो गया
अनेकों उड़ानें भरी
कुछ नई ऊर्जा मिली |
शायद था यह भ्रम
या था अंतरनिहित भाव
पर था अनुभव अनूठा
गुल गुलशन महका गया |
महावारी पैरों तले मखमली हरियाली
और वही मंथर गति कदमों की
घुलते से मधुर स्वर कानों में
कुछ बिम्बों का अहसास हुआ |
साकार कल्पना करने को
कुछ शब्द चुने कागज़ खोजे
ज्वार भावों का न थम पाया
नव गीत का श्रृंगार किया |
शब्दों का लिवास मिलते ही
कुछ अधिक ही निखार आया
जब भी उसे गुनगुनाया
कलम ने हाथ आगे बढ़ाया |
नई कृति नया सृजन नए भाव
प्रेरित होते बिम्बों से
जिनके साकार होते ही
सजने लगते नए सपने |

आशा

03 नवंबर, 2011

कसौटी






जिस साधना की नव विधा के, स्वर सिखाये आपने।
वो गीत गाये गुनगुनाये, जो सुनाये आपने।।
वो थे मदिर इतने कि कानों - में, मधुरता चढ़ गयी।
है गीत की यह रीत, गाने - की विकलता, बढ़ गयी।१।

वह गीत गाती, गुनगुनाती, वादियों में घूमती।
मौसम मधुर का पान करती, मस्तियों में झूमती।।
ढेरों किये तब जतन उसने, आपसे दूरी रही।
मिलना न था सो मिल न पाई, क्वचिद मज़बूरी रही।२।

बीते दिनों की याद उसको, जब सताने लग गयी।
तब याद जो मुखड़े रहे, वह, गुनगुनाने लग गयी।।
वह आत्म विस्मृत भटकनों में, भटकती जीने लगी।
फिर भूल कर सुध-बुध, मगन-मन, भक्ति-रस पीने लगी।३।

तब तोड़ कर बंधन जगत से, प्रभु भजन में खो गयी।
अनुरोध मन का मान कर, वह, कृष्ण प्यारी हो गयी।।
हर श्वास में प्रभु थे बसे, वश, लेश, तन-मन पर न था।
हर पल कसौटी तुल्य था, पर, पर्व से कमतर न था।४।
आशा

02 नवंबर, 2011

मीत बावरा

है मीत ही बावरा उसका ,निमिष में घबरा गया
पाया न सामने जब उसको ,भावना में बह गया |

थी बेचैन
निगाहें उसकी ,ना ही धरा पैरों तले
जाने कब तक यूं ही भटका , न पाया जब तक उसे |

भागा हुआ वह गया अपनी ,प्रियतमा की खोज में
पा दूर से ही झलक उसकी ,ठंडक आई सोच में |

आया नियंत्रण साँसों पर , आहट पाकर उसकी
मुस्कानों में खो गया , थी वह जन्नत उसकी |
आशा