04 नवंबर, 2011

सृजन के लिए


जो देखा सुना या अनदेखा किया
कुछ बस गया कुछ खो गया
दिल के किसी कौने में
कई परतों में दब गया |
दी दस्तक जब किसी ने
स्वप्नलोक में खो गया
अनेकों उड़ानें भरी
कुछ नई ऊर्जा मिली |
शायद था यह भ्रम
या था अंतरनिहित भाव
पर था अनुभव अनूठा
गुल गुलशन महका गया |
महावारी पैरों तले मखमली हरियाली
और वही मंथर गति कदमों की
घुलते से मधुर स्वर कानों में
कुछ बिम्बों का अहसास हुआ |
साकार कल्पना करने को
कुछ शब्द चुने कागज़ खोजे
ज्वार भावों का न थम पाया
नव गीत का श्रृंगार किया |
शब्दों का लिवास मिलते ही
कुछ अधिक ही निखार आया
जब भी उसे गुनगुनाया
कलम ने हाथ आगे बढ़ाया |
नई कृति नया सृजन नए भाव
प्रेरित होते बिम्बों से
जिनके साकार होते ही
सजने लगते नए सपने |

आशा

17 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों का लिवास मिलते ही
    कुछ अधिक ही निखार आया
    जब भी उसे गुनगुनाया
    कलम ने हाथ आगे बढ़ाया |

    बहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ।

    सादर

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  2. सुन्दर और गहन भाव लिए हुए अच्छी प्रस्तुति

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  3. शायद था यह भ्रम
    या था अंतरनिहित भाव
    पर था अनुभव अनूठा
    संजीदगी को समेटे शब्द .. सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. शब्दों का लिवास मिलते ही
    कुछ अधिक ही निखार आया

    बहुत अच्छी लगी यह अभिव्यक्ति|

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  5. आपकी कल्पना भी इन शब्दों के नये लिबास से सुसज्जित हो बहुत निखर कर सामने आई है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई ! आगामी यात्रा के लिये शुभकामनायें ! अपना ख्याल रखियेगा !

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  6. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  7. आदरणीया आशा जी चर्चा मंच पर जानकारी मिली सृजन के लिए आप को ब्लाग श्री से नवाजा गया हम कवी लेखक विदों के लिए गौरव का क्षण आप को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं अपना आशीष हम पर भी सदा लुटाएं ..
    भ्रमर ५
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

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  8. आप सब लोगों को हार्दिक धन्यवाद टिप्पणीयों के लिए |
    आशा

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  9. मन.... मन के विचारों को बहुत ही खूबसूरती कविता के माध्यम से उकेरा है आपने मैंने भी कुछ मन पर लिखा है समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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