दीप मालिका के बिना , सूना लगता ग्राम |
धुप दीप मिष्ठान बिना, है अधूरा अनुष्ठान ||
दीवाली त्यौहार की, धूम न नजर आई |
लक्ष्मीं जी के स्वागत की , जब शुभ घड़ी आई ||
सर्वप्रथम गृहणी सजी ,चमकाया घर द्वार |
की प्रतीक्षा उत्सुक हो ,कर
सोलह श्रृंगार ||
बालक पीछे ना रहे ,झटपट हुए
तैयार |
आए पटाखे फुलझड़ी,लेकर अपने साथ ||
फिर भी कहीं कमी रही ,चहरे रहे उदास |
मंहगाई की मार से ,कुछ बन न पाया ख़ास ||
आशा