चक्र समय का चलता जाता
कभी न थकता ना ही रुकता
दिन बीता रात गई
महीने गए साल गुजरे
युग तक बीत गया
सूरज वहीं चन्दा वहीं
वहीं ठहरी कायनात
यूं तो परिवर्तन कम ही हुए
पर सोच बदल गया
बाक़ी सब यथावत रहा
बच्चे भूल गए
सुबह क्या होती है
दस बजे सो कर उठते
रात्री जागरण करते
किताब सामने खुली रखते
पढ़ने का आडम्बर रचते
वे ऐसा करके
अपने भविष्य से
कर रहे खिलवाड़
यह् नहीं समझते
भूले कहानियां दादी नानी की
खुद तक सीमित हो गए
आधुनिकता की होड़ में
क्यूं कोई पीछे रहे
बच्चे कहाँ हैं
क्या कर रहे हैं
इससे किसी को क्या करना है
अपने सामाजिक जीवन में
कोई व्यवधान न आए
लोग इसी से मतलब रखते
पर हम समय के साथ
न चल पाए थक गए
बहुत पीछे रह गए
पर कुछ ऐसा भी हुआ
जिसे भूलना कठिन न हो
खट्टी मीठी यादों की
झड़ी लगी रहती है
उसमें ही व्यस्त हो जाते हैं
यह बात अलग है कि
तीव्रता यादों की
कम ज्यादा होती रहती है
ना प्यार बढ़ा न नफरत गई
समय की घड़ी चलती रही |
आशा