कहाँ हूँ कैसी
हूँ किसी ने न जाना
ना ही जानना चाहा
है क्या आवश्यकता
मेरी
मुझ में सिमट कर
रह गयी |
सारी शक्तियां सो
गईं
दुनिया के रंगमंच
पर
नियति के हाथ की
कठपुतली हो कर रह
गयी
|
खोजना चाहती हूँ अस्तित्व अपना
मन की शान्ति
पाने का सपना
अधिक बोझ
मस्तिष्क पर होता
जब विचारों पर
पहरा न होता |
अनवरत तलाश है तेरी
बिना किसी के आगे बढ़ने की
ऐसा कोना कहीं तो हो
जहां न व्यवधान
कोई हो |
जिन्दगी जैसी भी
हो
मैं और मेरा
आराध्य हो
दुनियादारी से
दूर
शान्ति का एहसास
हो |
आशा