18 जनवरी, 2014

तलाश एक कोने की



कहाँ हूँ कैसी हूँ  किसी ने न जाना
ना ही जानना चाहा
है क्या आवश्यकता मेरी
मुझ में सिमट कर रह गयी |
सारी शक्तियां सो गईं
दुनिया के रंगमंच पर
नियति के हाथ की
कठपुतली हो कर रह  गयी  |
खोजना चाहती हूँ अस्तित्व  अपना
मन की शान्ति पाने का सपना
अधिक बोझ मस्तिष्क पर होता
जब विचारों पर पहरा न होता |
अनवरत तलाश है तेरी
बिना किसी के   आगे बढ़ने की
ऐसा कोना  कहीं तो हो
जहां न व्यवधान कोई हो |
जिन्दगी जैसी भी हो
मैं और मेरा आराध्य हो
दुनियादारी से दूर
शान्ति का एहसास हो |
आशा

27 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है आदरणीया-
    शुभकामनायें-

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. करेकशन करवाने हेतु धन्यवाद रविकर जी |

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  2. मन के उथल - पुथल की बहुत अच्छी अभिव्यक्ति .... सादर !

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. काफी उम्दा प्रस्तुति.....
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
    - मिश्रा राहुल

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  5. नियति कीई कठपुतलियाँ तो हम सभी है , लेकिन इससे मुक्ति का प्रयास , हमारा परम ध्येय होना चाहिए ... आपकी सुन्दर प्रस्तुति ...

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  6. सारगर्भित एवँ गहन प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !

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    1. ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद साधना |लगता है आजकल बहुत व्यस्त हो |

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  7. मन के भावों को शब्दों में ढलने में सफल रचना ...बहुत सुन्दर |

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  8. कण-कण में जब वास तुम्हारा
    फिर क्यों न आभास तुम्हारा ........उत्तम प्रस्तुति ...

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  9. ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद कौशल जी

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