कहाँ हूँ कैसी
हूँ किसी ने न जाना
ना ही जानना चाहा
है क्या आवश्यकता
मेरी
मुझ में सिमट कर
रह गयी |
सारी शक्तियां सो
गईं
दुनिया के रंगमंच
पर
नियति के हाथ की
कठपुतली हो कर रह
गयी
|
खोजना चाहती हूँ अस्तित्व अपना
मन की शान्ति
पाने का सपना
अधिक बोझ
मस्तिष्क पर होता
जब विचारों पर
पहरा न होता |
अनवरत तलाश है तेरी
बिना किसी के आगे बढ़ने की
ऐसा कोना कहीं तो हो
जहां न व्यवधान
कोई हो |
जिन्दगी जैसी भी
हो
मैं और मेरा
आराध्य हो
दुनियादारी से
दूर
शान्ति का एहसास
हो |
आशा
क्या बात है आदरणीया-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
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हटाएंकरेकशन करवाने हेतु धन्यवाद रविकर जी |
हटाएंमन के उथल - पुथल की बहुत अच्छी अभिव्यक्ति .... सादर !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद निवेदिता जी |
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
सूचना हेतु आभार |
हटाएंबेहतरीन...
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिये धन्यवाद |
हटाएंधन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंbhut sunder.
जवाब देंहटाएंVinnie
नियति कीई कठपुतलियाँ तो हम सभी है , लेकिन इससे मुक्ति का प्रयास , हमारा परम ध्येय होना चाहिए ... आपकी सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नीरज जी |
हटाएंसारगर्भित एवँ गहन प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद साधना |लगता है आजकल बहुत व्यस्त हो |
हटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजीव जी ब्लॉग पर आने के लिए |
हटाएंमन के भावों को शब्दों में ढलने में सफल रचना ...बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु आभार मीनाक्षी जी |
हटाएंबहुत सुन्दर मनोद्गार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वन्दना जी |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रीना जी |
जवाब देंहटाएंकण-कण में जब वास तुम्हारा
जवाब देंहटाएंफिर क्यों न आभास तुम्हारा ........उत्तम प्रस्तुति ...
ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद कौशल जी
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