दोराहे पर खड़ी सोच रही
इधर जाए या उधर जाए
कुछ समझ नहीं पाती
है क्या भाग्य में |
जीवन जीना हुआ कठिन था अब तक
कदम बाहर निकाले आगे की न सोची
क्या यह सही किया?
है दुविधा अभी भी मन में क्या करे
जीने की तमन्ना लिए मन अटका |
अब सोच नासूर बना क्या करे
भूल से भी गलत कदम यदि उठाया
कहीं की भी नहीं रहेगी
है इसकी खबर उसको |
पहले भी घर से निकलने के पहले
कितने किस्से सुने देखे थे
उनका भी अंजाम देखा
फिर भी यही कदम नजर आया
फिर से विचार नहीं किया |
सलाह किसी से न ली
है अब दुविधा मन में
कौन सी राह चुने
कहां जाए |
पहला कदम जब उठाया था
घर छोड़ने का मन बनाया था
तभी सोच लिया होता
है क्या सही और क्या गलत |
तब यह हाल न होता
धन की कीमत क्या हैं
घर तो न बिखरता
बाहर की असुरक्षा का भय न होता |
आशा सक्सेना
विनाश काले विपरीत बुद्धि हो जाती है ! तब अंजाम के बारे में इंसान नहीं सोचता ! और दुष्परिणामों को उसे सहना ही पड़ता है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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