24 दिसंबर, 2022

राह


 

दोराहे पर खड़ी सोच रही

इधर जाए या उधर जाए

कुछ समझ नहीं पाती 

है क्या भाग्य में |

जीवन जीना हुआ  कठिन था अब तक

कदम बाहर निकाले आगे की न सोची 

 क्या यह सही किया?

है दुविधा अभी भी मन में क्या करे

जीने की तमन्ना लिए मन अटका |

अब सोच नासूर बना क्या करे 

भूल से भी गलत कदम यदि  उठाया 

कहीं की भी नहीं रहेगी 
 
है इसकी खबर उसको  |

पहले भी घर से निकलने के पहले 

 कितने किस्से सुने देखे थे 

उनका भी अंजाम देखा 

फिर भी यही कदम नजर आया 

 फिर से विचार नहीं  किया |

 सलाह किसी से न ली

 है अब दुविधा मन में 

कौन सी राह चुने 

कहां जाए |

पहला कदम जब उठाया था
 
घर छोड़ने का मन बनाया था  

तभी सोच लिया होता 

है क्या सही और क्या गलत |

तब यह हाल न होता

धन की कीमत क्या हैं 

घर तो  न बिखरता 

बाहर की  असुरक्षा का भय न होता |

आशा सक्सेना 


2 टिप्‍पणियां:

  1. विनाश काले विपरीत बुद्धि हो जाती है ! तब अंजाम के बारे में इंसान नहीं सोचता ! और दुष्परिणामों को उसे सहना ही पड़ता है ! सुन्दर रचना !

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