उसके कारण चल न पाती
है ही भारी इतना हुए पैर भारी
बोझ है ही ऐसा किसी से बांटना न चाहा |
अचानक कहाँ से ऊर्जा आई
मेरे अन्तस में समाई
मैंने कार्य पूर्ण करने की ठानी
बढ़ने लगी आगे
काँटे से भरे कच्चे मार्ग पर
कोई की बैसाखी नही चाही
इतनी क्षमता रही मुझ में
केवल तुम्हारे सिवाय कोई मेरा नहीं
रही यही धारणा मन में मेरे
केवल तुम मेरे हो
है पूरा अधिकार तुम पर
और कोई नहीं चाहती
है केवल अपेक्षा तुम से |
आशा सक्सेना
बस कोई एक हो पूर्ण रूप से अपना तो ये जग अपनी वर्ना सारी सूनी-सूनी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
धन्यवाद कविता जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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