हुस्न तेरा क्या कहियेकिसी हूर से कम नहीं तू
या है एक नन्हीं परी
श्वेत वस्त्रों से सजी है |
पंख भी हैं धवल तेरे
प्यार से जब भी देखती
सारी कायनात रौशन होती
जन्नत नजर आने लगती |
जब रौद्र रूप धारण करती
सांस हलक में अटक जाती
दृष्टि देख सहम जाती
मेरी जान निकल जाती |
|आशा
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 17 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंThanks for the information of the post
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (17-01-2021) को "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर" (चर्चा अंक-3949) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार शास्त्री जी |
सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंपरी सी सुन्दर कोमल चंचल इतनी प्यारी गुडिया जिसके पास हो उसे और किसी चीज़ की क्या ज़रुरत होगी ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए साधना |
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