साथ में बड़ी बेटी और बच्चे थे इस कारण जाने में बहुत सुविधा रही
पर कटरा पहुँचते शाम हो गई थी |थकान बहुत हो गई थी इसलिए रात में होटल में
रुके |दूसरे दिन सुबह पांच बजे देवी दर्शन को जाना था | सुबह की बस पकड़ी और लगभग
दो घंटे बाद हम अपने गंतव्य स्थल पर पहुँच गए |पर बेटी के बड़े बेटे को बुखार आ गया |इसकारण उन लोगों ने
दर्शन का इरादा टाल दिया |वैसे भी वे लोग पहले जा चुके थे |दूसरे दिन प्रातः हम
लोग दर्शन को निकले |पहले सोच रहे थे कि पैदल ही जाएंगे पर थोड़ी दूर चल कर ही थकान
होने लगी |हमने घोड़े पर जाने का मन बनाया |और घुड़सवारी का आनंद लिया भरपूर |लगभग दो घंटे बाद एक
प्रांगण में जा पहुंचे |देखा बहुत लम्बी कतार लगी थी दर्शनार्थियों की |हम भी कतार
में शामिल हो गए |धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे |करीब एक घंटा लगा देवी के दर्शन में |पर
जब वहां पहुंचे आधे मिनिट भी रुकने न दिया जिससे दर्शन ठीक से कर पाते |आगे बढ़ो
आगे बढ़ो कहते स्वयंसेवकों ने तो ध्यान से दर्शन
ही नहीं करने दिए |बड़े बेमन से आगे बढे | बहुत जल्दी ही हम फिर से उसी
आँगन में खड़े थे |वहां की खिड़की से प्रसाद लिया और लौट चले |
भैरो मंदिर बहुत ऊंचाई पर था |वहां जाने का इरादा कैंसिल कर दिया |फिर से
घोड़ों पर हुए सवार और नीचे उतर आए |नीचे गुलशन कुमार का स्टाल था उससे कुछ कसेट
खरीदे |लौटते समय बाजार से छिले अखरोट खरीदे | और बापिस होटल में आगये |
आशा
सुन्दर यात्रा संस्मरण।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंवैष्णो देवी के दर्शन आसान नहीं ! यात्रा कठिन है ! आपका अनुभव हमारा भी रहा ! जब दर्शन करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता तो बड़ा असंतोष होता है ! वैसे रास्ता बहुत सुन्दर है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएं