बनती सवरती बिंदास रहती
गृह कार्य में रूचि न रखती
जब छूटा बाबुल का अंगना
तब मुंह बाए खड़ी थीं समस्याएँ अनेक |
जिधर देखो यही कहा जाता
कुछ भी तो आता नहीं
कैसे घर चला पाएगी
किस किसके मुंह पर ताला लगाती |
पर वह हारी नहीं
धीरे से कब कुशल गृहणी में बदली
जान नहीं पाई |
जानना चाहते हो कैसे ?
यह था लगन का चमत्कार
जिस कार्य को करने को सोचा
जी जान लगा दी उसने
कभी सफल् हुई कभी हारी
\पर हिम्मत नहीं हारती |
यही एक गुण था उसमें ऐसा
जहां जाती सफलता उसके कदम चूमती
जिससे सभी क्षेत्रों में हुई सफल
कुशल गृहणी कहलाई |
आशा
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।
Thanks for the comment
हटाएंकोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ! सुन्दर रचना ! वैसे यह किसकी प्रशंसा में कशीदे काढ़ रही हैं आप ?
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबधाई
Thanks for the information of the post
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