पञ्च तत्व से बनाया पिंजरा
द्वार बंद करना शेष रहा
तभी जीव ने कदम रखा
पीछे से आए माया मोह मद लोभ |
जैसे ही कदम रखे पिंजरे में
द्वार स्वयम ही बंद हो गया
जीव ने कोशिश की भर पूर पहले
वह टस से मस न हुआ
बंद ही रहा बहुत समय तक |
जीव ने सोचा क्या करे
भरपूर माया का उपयोग किया
माया में हो लिप्त गया
मोह ने अपने भी पैर पसारे
दौनों का मद ऐसा चढ़ा उस पर
वह मदांध हो गया इतना की
वहीं फंसा रह गया बहुत समय तक |
पर जब हुआ जर जर पिंजरा
याद आई फिर से स्वतंत्र विचरण की
उस द्वार की जिससे
पिंजरे में प्रवेश किया था |
वह बेचैन हुआ आध्यात्म की ओर झुका
हर बार ईश्वर का ध्यान करता
फिर द्वार खोलने का प्रयत्न करता
माया मोह से मन उचटा उसका |
एक दिन पिजरे का द्वार खुला रह गया
वह भूला उन चारों को जिन ने बांधा था उसको
उड़ चला स्वतंत्र हो अनंत में
खाली पिंजरा रह गया जो पञ्च तत्व में विलीन हुआ
इस भव सागर में |
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 30 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
sसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचनाइस अंक में देने के लिए |
शाश्वत सत्य।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंअमृता जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
संसार के मायाजाल की सरलतम व्याख्या। सादर प्रणाम दी।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए मीना जी |
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद भारती जी टिप्पणी के लिए |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंआलोक जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
वाह ! जीवन दर्शन की सुन्दर व्याख्या करती मोहक प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |