कब तक बिना सुविधाओं के
जन जीवन कितना हुआ कठिन
यह तुम क्या जानोगे
तुमने कभी अभाव देखा ही नहीं |
दिन रात काम करते तब भी
दो जून की रोटी तक नसीब नहीं होती
यही हाल रहा तो कैसे जीवन बीतेगा
आधी दूर भी न चल पाएंगे
अधर में अटक कर रह जाएंगे |
धनवानों के घर जो भोजन
फेंक दिया जाता घूरे पर
वही बीन कर खाना पड़ता
विडंबना नहीं तो और क्या है|
किसी की थाली में षटरस भोजन
कोई भूखे पेट ही सो जाता
उसे कुछ भी हांसिल नहीं होता
है यह कैसी नीति उसकी |
जब जन्म दिया धरा पर
क्यूँ न दीं सुख सुविधाएं
महनत की कोई कीमत नहीं क्या ?
मजदूर यूँ ही बिना बात पिसते रहते
कभी दया न आई मालिकों को |
जब जन्म लिया था एक साथ
फिर तुम कहाँ और वह कहाँ
किसी के भाग्य में क्या लिखा प्रभू ने
है यह
न्याय कैसा उसका
कभी सोच कर देखना |
यदि गहराई से सोचा समझ जाओगे
यह अंतर किसलिए ?
शायद है पूर्व जन्म के कर्मों का फल
या है पूर्व जन्म के किये कर्मों की सजा
एक जन्म में उस को जो कार्य सोंपा जाता
जब निष्कर्ष निकलता देर हो चुकी होती
मृत्यु का डेरा आ जाता |
आत्मा यूँ ही भटकती न रहती
पिछले कर्मों की सजा पाते ही
इस जन्म में यहीं पर जब तक
अपनी सजा पूरी नहीं कर लेती
आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती |
आशा
सर्वहारा वर्ग के कष्टों और त्रासदी का मार्मिक चित्रण ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |