आई खुश खबरी
मन हुआ उत्फुल्ल
जब बेटी आई घर में
बहार आई जीवन में |
जब घुटनों चली
चलना सीखा, खुद खड़ी हुई
अपनी चाह बताने को
फरमाइश भी खुद ही करने लगी |
एक दिन भेजा उसके पापा को
बाजार सौदा लाने को
वे ले आए पायलें जो छमछम बोलें
जब बजें कान में रस घोलें |
वह ठुमक ठुमक कर चलने लगी
घुघरुओं की खनक
सुनाई देती आँगन में
मन मोर सा नाचने लगता उसे देख |
किसी ने कहा
यह तो है पराया धन
पर मन बोला नहीं है वह पराया धन
वह तो है लक्ष्मीं घर की |
वही हैं बडभागी
जिनके घर बेटी जन्म लेती
सभी बधाई देते
मिठाई बांटी जाती खुशिया मनाई जातीं |
जब बेटी पढेगी लिखेगी
सर्वगुण सम्पन्न बनेगी
उसके गुणों की चर्चा सर्वत्र होगी |
जब व्याही जाएगी
एक नहीं दो कुल की मर्यादा निभाएगी
सर हमारा गर्व से उन्नत होगा
यही हमें पुरूस्कार मिलेगा |
आशा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
इसमें कोई संदेह नहीं ! बेटियाँ घर की लक्ष्मी होती हैं ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |