13 अक्तूबर, 2012

साथ


शब्द वांण विष से बुझे ,करते गहरे घाव |
वो ही करता सामना ,जिसका होवे ठांव ||

हुआ मनाना रूठना ,बीते कल की बात |
धन न हुआ तो क्या हुआ ,है अनुभव का साथ ||

निमिष भर अकेला रहा ,लागी मन को ठेस |
जब समय के साथ चला ,मिटने लगा कलेश ||

अभिनव प्रयासरत रहा ,ना है  दिल पर बोझ |
कुछ नया  बन कर रहेगा ,होगी नई खोज ||

कभी न हिम्मत हारता ,जो चलता अविराम |
भव सागर से तर जाता ,ले कर प्रभु का नाम ||
आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. कभी न हिम्मत हारता ,जो चलता अविराम....
    बहुत ही सुन्दर और प्रेरणादायी रचना....

    सादर
    राहुल

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  2. कभी न हिम्मत हारता ,जो चलता अविराम |
    भव सागर से तर जाता ,ले कर प्रभु का नाम ||
    .....प्रभु नाम की महिमा अनंत हैं ...बहुत बढ़िया

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  3. चाहत पर है नियंत्रण, नहीं बहुत की चाह |
    दो रोटी मिलती रहे, लो नि:शुल्क सलाह ||

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  4. उचित सीख देते प्रेरणादायी और सुन्दर दोहे ! बहुत बढ़िया !

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  5. बेहतरीन उम्दा भाव सुन्दर रचना

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  6. सुन्दर शब्द संयोजन निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हुई |

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  7. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 15-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1033 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  8. शब्द वांण विष से बुझे ,करते गहरे घाव |..........बाण ....
    वो ही करता सामना ,जिसका होवे ठांव ||

    हुआ मनाना रूठना ,बीते कल की बात |
    धन न हुआ तो क्या हुआ ,है अनुभव का साथ ||

    बढ़िया दोहावली है .सकारात्मक ऊर्जा और भाव लिए उत्साह के साथ दोहावली आगे बढती है .बधाई .

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  9. शब्द वांण विष से बुझे ,करते गहरे घाव | वो ही करता सामना ,जिसका होवे ठांव ||
    हुआ मनाना रूठना ,बीते कल की बात |

    सुन्दर प्रस्तुति
    अच्छी रचना पढ़वाने के लिए आभार

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