16 अक्टूबर, 2012

सोनाक्षी



सोनाक्षी  चंचल मना ,पाया रूप अनूप  |
कानन वन में खोजती ,वर अपने अनुरूप  ||

आलते से पैर सजे  ,पायल की झंकार |
 रख पाते न सुध अपनी  ,पा कर अपना प्यार ||

मृगनयनी मृदुबयनी ,जब करती मनुहार |
स्वर्णिम आभा फैलती,ऐसा है यह प्यार  ||

पुष्प भरी डाली झुकती ,जाने कितनी बार |
मुखडा छूना चाहती ,करने को अभिसार ||

यहाँ वहाँ वह  घूमती ,खुद को जाती भूल |
दामन खुशियों से भरा ,वर पा कर अनुकूल ||



7 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ वहाँ वह घूमती ,खुद को जाती भूल |
    दामन खुशियों से भरा ,वर पा कर अनुकूल ||खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  2. मृगनयनी मृदुबयनी, जब करती मनुहार
    स्वर्णिम आभा फैलती.....
    सपने होते साकार
    ..............................................
    आनंद आता है आपको पढ़कर

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  3. मृगनयनी मृदुबयनी ,जब करती मनुहार |
    स्वर्णिम आभा फैलती,ऐसा है यह प्यार ||...बहुत सुन्दर...आशा जी

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  4. तिसुन्दर ,मन के भावों को मोती कि तरह पिरोया है आपने

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  5. बहुत प्यारे दोहे ! हर दोहा श्रांगारिकता के अभिनव रंग से सजा हुआ ! आनंद आ गया पढ़ कर ! बहुत खूब ! नवरात्र की ढेर सारी शुभकामनायें !

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  6. सुन्दर..अति सुन्दर आशा जी...
    वाकई आनंदित हूँ....

    सादर
    अनु

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