01 नवंबर, 2015

मुक्तक

है आज करवा चौथ प्रिये 
जलाए दीप तुम्हारे लिए 
चाँद देखें या तुम्हें 
तुम्ही मन में समाए हुए |

जब से तुम्हें अपना लिया
प्यार का इजहार किया
 रंग तुम्हारा   ऐसा चढ़ा
दूजा रंग न भाया पिया |

जो कभी दो जिस्म एक जान हुआ करते थे
जिक्र हर बात का आपस में किया करते थे
पर आशियाँ उजड़ते ही ,एक बड़ा बदलाव आया
फिर से राहें अलग हुईं ,वे मुंह फेर लिया करते थे |

जब बुरे विचार मन में आते हैं
अंतस खोखला कर जाते हैं
तब प्यार भरी एक थपकी से
हम उनसे बच पाते हैं |

आशा






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