नेत्र बंद करते ही रोज रात में
सपने आते रहते जाते रहते
मन को विचलित करते रहते
दहशत बन कर छा जाते |
कितने किये टोटके कई बार
पर कोई हल न निकला
जीवन पर प्रभाव भारी हुआ
सुख की नींद अब स्वप्न हुई |
कितनी बेचैनी में कटती रातें
मेरा कल्पना से बाहर थीं
प्रातःनयन खुलते ही वे स्वप्न
अपना प्रभाव छोड़ कोसों दूर चले जाते|
किसी ने कहा चाकू सिरहाने रखो
उसे साफ कर तकिये के नीचे रखा
फिर भी उनसे पीछ न छूटा
जीना मुश्किल हुआ |
डर ऐसा बैठा मन मस्तिष्क में
पलक झपकाने का साहस न हुआ
जाने कितने उपाय पूंछे सब से
रातें कटने लगीं जागरण में |
ईश्वर भजन से कोई अच्छी दवा न मिली
अब रोज रात हाथ जोड़ कर
ईश वन्दना करता हूँ स्वप्नों से मुक्ति मिले
मन की शान्ति के लिए दुआ मांगता हूँ |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment on this post
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०५-०८-२०२१) को
'बेटियों के लिए..'(चर्चा अंक- ४१४७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the use comment
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 05 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार रवीन्द्र जी |
जीवन में शांति बहुत जरूरी है। खूबसूरत कविता।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंकितने किये टोटके कई बार
जवाब देंहटाएंपर कोई हल न निकला
जीवन पर प्रभाव भारी हुआ
सुख की नींद अब स्वप्न हुई |
हृदयस्पर्शी रचना...🌹🙏🌹
धन्यवाद शरद जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंगहन रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संदीप जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंनींद के साथ सपनों का चोली दामन का साथ होता है ! इनसे क्या विचलित होना ! नींद खुलते ही टूट भी जाते हैं ! जो खुद इतने क्षणिक और अस्थाई हों वो दूसरों का क्या बुरा कर पायेंगे ! सुबह के साथ सपनों को भी भूल जाना चाहिए !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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