जलचर थलचर और नभचर
निर्जीव और सजीव सहचर
एकत्र हो बनाते एक समुच्चय
जो कहलाता विश्व का
स्वरुप
वहां भिन्न
प्रजातियाँ जीवों की
आवश्यकतानुसार
परिवर्तन कर
करती रहतीं वास हैं |
हर समय की चहल पहल
जीवन्त बनाए रखती
वातावरण
इसे यदि क्षति
पहुंचे उसे तो कष्ट होता ही है
कितना कष्ट होता सोच
प्रधान मन को |
यदि जीने की तनिक भी
तमन्ना हो
आसपास की सभी वस्तुएं होती आवश्यक
सजीव हों या निर्जीव
सभी के लिए
इस तथ्य को नकारा
नहीं जा सकता |
आवश्यक है दोहन
प्रकृति का सीमित हो
और बड़े यत्न से किया जाए
पुरानी यादों को दोहराने के लिए
इस तरह के आयोजन
किये जाते हैं |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए
पृथ्वी दिवस पर बहुत ही सार्थक सन्देश देती उत्कृष्ट प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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