25 अप्रैल, 2021

तिल तिल मिटी हस्ती मेरी


तिल तिल कर मिटी हस्ती मेरी 

कभी इस पर विचार न किया

जब तक सीमा पार न हुई

तरह तरह की अफवाएं न उड़ी|

रोज सुबह होते ही

कोई  अफवाह सर उठाती

किये रहती बाजार गर्म उस दिन का

सुन व्यंग बाण मन आहत होने लगता  |

 कभी रोती सिसकती सोचती किसी को क्या लाभ

 दूसरों  की जिन्दगी में ताकाझाँकी  करने का

मिर्च मसाला मिला  चटपटी चाट बना कर

अनर्गल बातें फैलाने का  |

सूरज पश्चिम से तो उगेगा नहीं

ना ही पूर्व में अस्त होगा

दिन में रात का एहसास कभी न होगा

 ना ही   पूरनमासी को  अधेरी रात दिखेगी |

अपनी समस्याओं से कब मुक्ति मिलेगी 

इस तक का मुझा एह्सास नहीं हुआ अब तक

 खुद की समस्याओं में  ऎसी उलझी मैं 

 निदान उनका न कर पाई और तिल तिल मिटती गई |

यही एक कमी है मुझमें

हर बात किसी से सांझा करने की चाह में

कुपात्र या सुपात्र नहीं दिखाई देता

दिल खोल कर सब बातों को सांझा करती हूँ |

यहीं मात खाती हूँ तिलतिल मिटती जाती हूँ

फिर अपना खोया हुआ सम्मान अस्तित्व में  खोजती हूँ

अब तक तो वह हवा होगया कैसे मिलेगा कहाँ मिलेगा

भूलना होगा मेरा भी अस्तित्व कभी था बीते कल में |

आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 26-04 -2021 ) को 'यकीनन तड़प उठते हैं हम '(चर्चा अंक-4048) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. सुप्रभात मेरी रचना चुनने के लिए आभार रवीन्द्र जी |

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  3. रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय, सुनिए इठलैहे लोग सब, बाँट न लैहें कोय।।।।
    इसी भाव की तरह आपकी रचना श्रेयस्कर लगी। हमें पता ही नहीं होता कि सामने वाले के मन में क्या घटित हो रहा है और हम अपनी ही कब्र खोदे चले जाते हैं, भाव विभोर होकर।।।।

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    1. सुप्रभात टिप्पणी बहुत अच्छी लगी |टिप्पणी के लिए धन्यवाद पुरुषोत्तम जी |

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  4. सत्य है ! दुःख बाँटने वाले कम ही होते हैं जगा में ! अपनी व्यथा अपने तक ही सीमित रखनी चाहिए ! सार्थक चिंतन !

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  5. टिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |

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