१-जीवन शुष्क
ना कोई आकर्षण
बदरंग है
२-कष्टों की बेल
आसपास पसरी
स्वप्न अधूरा
३-महांमारी का
जब आगाज हुआ
सदमा लगा
४-विकट रूप
कोविद की बापसी
रूप बदला
५- दुगुनी शक्ति
समाई है इस में
जान न बक्शी
६- कोई भी कष्ट
सहा जा सकता है
कोविद नहीं
आशा
बढ़िया हाइकु !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |
कृपया शुक्रवार के स्थान पर रविवार पढ़े । धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हायकु।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हायकु
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